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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ शाताधर्मकथाङ्गसूत्र प्रामाण्यादन्यस्यापि श्रावकादेस्तावदेव तदिति मन्तव्यं, चरितानुवादरूपत्वादस्य, इति । न चेत्यस्य मन्तव्यमित्यत्रान्वयः। द्रौपदी प्रणिपातदण्डकमात्रं-दण्डवत्मणाममात्ररूपं चैत्यवन्दनं-प्रतिमावन्दनं कृतवतीत्यथै बुद्ध्वाऽन्योपि श्रावक एतत्सूत्रं प्रमाणमाश्रित्य तावदेव तत् प्रणिपातदण्डकमात्रं वन्दनं कुर्यादिति न मन्तव्यम् , तत्र कारणमाह ' चरितानुवादरूपत्वादस्य ' इति । अस्य एतत्मूत्रस्य चरितानुवादरूपत्वात् ज्ञातप्रदर्शकतया यथावृत्तस्य तत्तच्चरितस्यानुवादरूपत्वात् , न तु भगवता ' जयं चरे जयं चिट्टे' इत्यादिवत् कचिदाज्ञा प्रदत्ता। तस्मादस्य विधिनिषेधबोधकत्वं न संभवतीत्याह -' न च चरितानुवादवच. पात भी सिद्ध हो जाती है कि अन्य श्रावकों को भी इसी प्रकार वन्दन नमन करना चाहिये-सो इस प्रकार का कथन ठीक नहीं है। कारण कि यह चरितानुवाद रूप है।। ____ भावार्थ-कोई अन्य श्रावक जन ऐसा समझकर कि सूत्र में जब द्रौपदी ने दण्डकी तरह होकर,चैत्यवंदन किया है तो इसी सूत्रकी प्रमाणता लेकर हमें भी इसी तरहसे प्रणाम करना चाहिये सो इस प्रकार की मान्यता उनकी ठीक नहीं है कारण कि यह चरित का ही अनुवादक है। चरितका अनुवादक वाक्य विधेयरूप से मान्य नहीं होता है । यह सूत्र चरित का अनुवादक रूप है-इसका यह भाव है कि यह वाक्य ज्ञात अर्थ का प्रदर्शक होने से पहिले जो जो बातें २ जिस २ रूपमें हो चुकी हैं उन सब का अनुवादक रूप है। " जयं चरे जयं चिट्टे" इत्यदि सूत्र की तरह यह विधि वाक्य नहीं है । इसीलिये भगवान ने प्रतिमा के पूजन और वंदना, नमन करने आदि की आज्ञा कहीं भी सूत्र में नहीं दी પ્રમાણે જ વંદન નમન કરવો જોઈએ. તે આ જાતનું કથન એગ્ય નથી, કેમકે આ ચરિતાનુવાદ રૂપ છે. - ભાવાર્થ–ગમે તે શ્રાવક આમ સમજીને કે સૂત્રમાં જ્યારે દ્રોપદીએ દંડાકારે થઈને ચૈત્ય વંદન કર્યું છે તે આ સૂત્રને જ પ્રમાણ સ્વરૂપ માનીને અમારે પણ આ પ્રમાણે જ પ્રણામ કરવા જોઈએ. તે તેમની આ વાત પણ ઠીક કહી શકાય તેમ નથી, કેમકે આ ચરિતને જ અનુવાદક છે. ચરિતનું અનુવાદક વાક્ય વિધેય રૂપમાં માન્ય હેતું નથી. આ સૂત્ર ચરિતને અનુવાદક રૂપ છે. આને ભાવ એ છે કે આ વાકય જ્ઞાત અર્થને પ્રદર્શક હવાથી જે જે વાતે જે રૂપમાં થઈ ચૂકી છે તે બધાનું અનુવાદક રૂપ છે"जय चरे जयं चि?” त्या सूत्रनी रेभसा विधिपाय नथी. मेटा માટે ભગવાને પ્રતિમાના પૂજન અને વંદન, નમન કરવા વગેરેની આજ્ઞા સૂત્રમાં For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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