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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૨૦ शाताधर्मकथासूत्रे उज्जाणरस उज्जाणसिरिं पञ्चणुभवमाणा विहरंति, तत्थ पां एगे गोहिलग पुरिसं देवदत्तं मणियं उच्छंगे धरइ एगे पिट्ठओ आयतं धरे एगे पुष्प पूरयं रए एगे पाए रएइ एगे चामरुक्खेवं करेइ एणं सा सूमालिया अज्जा देवदत्तं गणियं तेहिं पंचहि गोहिल पुरिसेहिं सद्धि उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणी पासइ तरणं तीसे इमेया रूवे संकप्पे समुप्पज्जित्था - अहो णंइमा इत्थिया पुरा पोराणाणं कम्माणं जाव विहरइ, तं जड़ णं केइ इमस्स सुचरियस्स तत्रनियम भरवारस कहाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि तो णं अहमत्रि आगमिस्सेणं भवग्गहणेणं इमेयारूवाई उग लाई जाव विहरिज्जामि तिकट्टु नियाणं करेइ करिता आगावणभूमिओ पच्चीरुहइ ॥ सू- १४|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टीका तस्य णं चंपाए ' इत्यादि । तत्र खलु चम्पायां नगर्यां ललिता नाम्नी ' गोट्टी' गोष्टी=मण्डली परिवसति किंभूता सा गोोत्याह- 'नरवइदियावियारा ' नरपतिदत्तविचारा पतिना दत्तो विचारः संमतिर्यस्यै सा तथा सेवादिना सन्तुष्टान्नरपतेर्लब्धस्वतन्त्रता तथा अम्मापहनिययनिधिवासा ' अम्बावितृनिनकनिः पिपासा = मातापित्रादि निरपेक्षा 'विहार निकेया' - " तस्य णं चपाए ललिया नाम ' इत्यादि । टीकार्थ - ( तत्थ णं चंपाए ललिया नाम गोट्ठी परिवसइ) उस चंपानगरी में 'ललिता' इस नामकी गोष्ठी मंडली - रहती थी । ( नरवइ दिण्णविधारा, अम्मापि नियय निपिवामा वेसविहारकयनिकेया, तत्क्षणं चंपाए ललिया नाम ' इत्यादि - टीअर्थ - ( तत्थणं चंपाए ललिया नाम गोट्टी परिसइ) ते यांचा नगरीमा 'सबिता ' नाभे गोष्ठी' भांडजी रखेती हती. ( नरवइ दिष्णवियारा अम्मापि निययनिष्पिवासा, देवविहारकयनिकेया, नाणाविहअरिणयमाणा, अटा For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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