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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir arrrraneafoot टी० अ० १६ धर्मरुय्यनगारचरितवर्णनम् १६७ आर्याः ! नागश्रियं ब्राह्मणीमधन्यामपुण्यां यावद् दुर्भः निम्बगुलिकाम्, यथाखलु नागश्रिया ब्राह्मण्या तथारूपः प्रकृतिभद्रत्वादिगुणयुक्तः साधुः धर्मरुचिरनगारी माक्षपणपारण के शारदिकेन तिक्तालाबुकेन यावत् स्नेहावगा देनाsकाल एव जीविताद् व्यपरोपितः ||५०४ ॥ मूलम्-तएणं ते समणा निग्गंथा धम्मघोसाणं थेराणं अंतिए एयम सोच्चा णिसम्म चंपाए सिंघाडगतिग जाव बहुजणस्स एवमाइवखंति-धिरत्थु णं देवाणुप्पिया ! नागसिरीए माहणीए जाव जिंबोलियाए जाए णं तहारूवे साहू साहूरूवे सालइए जीवियाओ ववशेवेइ, तए णं तेसि समणाणं अंतिए एयमहं सच्चा सम्म बहुजण अन्नमन्नस्स एवम इक्खइ एवं भासइ णं अज्जो ! नागसिरीए माहणीए अधन्नाए, अपुन्नाए, जाव विबोलियाए जाए णं तहारूवे साहू धम्मरुई अणगारे मासखमणपारणगंसि सालइए जात्र गाढेणं अकाले चेव जीविधाओ रोविए) वे धर्मरूचि देव इस देवलोक से चवकर यावत् महाविदेह क्षेत्र से सिद्धिको प्राप्त करेंगे आर्यो ! अधन्य, अपुण्य यावत् दुर्भग निम्यगुलिका जैसी अनादरणीय उस नागश्री ब्राह्मणी को धिकार हो कि जिसने तथारूप, प्रकृति भद्रस्वादि गुणों से संपन्न साधु धर्मरुचि अनगार को मासखमण के पोरणा के दिन शारदिक तिक्त कडवी तुंबी का शाक यावत् स्नेहावगाढ बनाकर दिया कि जिससे वे अकाल में मरण को प्राप्त हुए | सू० ४ ॥ तं रत्थु अज्जो ! नागसिरीए माहणीए अपनाए, अपुन्नाए, जाव जिंबोलिया जाए णं तहारूवे साहू धम्मरूई अणगारे मासखमणवारणगंसि साल एणं जाव गाढेणं अकाले चैव जीवियाओ ववरोविए) તે ધર્માંચિ દેવ તે દેવલેાકથી ચવીને યાવત્ મહાવિદેહ ક્ષેત્રથી સિદ્ધિને भेजवशे. हे खायो ! अधन्य, अयुष्य, यावत् दुभंग निमगुलिअ नेवी नाદરણીય તે નાગશ્રી બ્રહ્મણીને ધિક્કાર છે કે જેણે તથારૂપ, પ્રકૃતિ ભદ્રંત્વ વગેરે ગુણાવાળા સાધુ ધરુચિ અનગારને માસ ખમણના પરણાંના દિવસે શારદિક તિકત કડવી તુખડીનું શાક-કે જે સરસ વઘારેલું, જેની ઉપર ઘી તરતું स्तु- बाहोरायुं ने सीधे ठाणे मोनु भरथयु | सूत्र "" ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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