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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १४ तेतलिपुत्रप्रधानचरितवर्णनम् मूलम् - तपणं से पोहिले देवे पोहिलारूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता, तेतलिपुत्तस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी-हं भो ! तेतलिपुत्ता ! पुरओ पवाए पिट्ठओ हत्थिभयं, दुहओ अचक्खुफासे, मज्झे सराणि वरिसंति, गामे पलित्ते रन्ने झियाइ, रन्ने पलिते गामे झियाइ । आउसो तेतलिपुत्ता ! कओ वयामो ?, तणं से तेतलिपुते पोट्टिलं एवं व्यासीभीयस्स खलु भो ! पव्वज्जा सरणं, उक्कंठियस्स सदेसगमणं छुहियस्स अन्नं, तिसियस्स पाणं, आउरस्स भेसजं, माइयस्स रहस्सं अभिजुत्तस्स पच्चयकरणं, अद्धाणपरिसंतस्त्र वाहणगमणं, तरिउकामस्स पवहणकिच्चं परं अभिउंजिङ कामस्स सहायकिच्चं खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स एचो एगमवि णं भवइ । तएणं से पोहिले देवे तेयलिपुत्तं अमच्चं एवं वयासी - सुद्ध णं तुमं तेयलिपुत्ता ! एयमहं आयाणाहि त्तिकद्दु दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए ॥ सू० १९ ॥ || " टीका -' तरणं से' इत्यादि । ' तरणं' ततः खलु तेतलिपुत्रे आर्तध्यान रते सति स पोहिलो देवः 'पोहिलारूवं पोहिलारूपं विकुर्वति वैक्रियशक्या " 'तएण से पोहिले देवे ' इत्यादि ॥ टीकार्थ - (ए) इसके बाद ( से पोहिले देवे ) उस पोहिल देवने (पाहिला रूवं विव्व) पोहिला के रूप की विकुर्वणा की - अर्थात वैकिय शक्ति के प्रभाव से उसने पोट्टिला का रूप धारण किया ( विउन्विता 'तएण से पोट्टिले देवे' इत्यादि टीडार्थ - (तएण ) त्यार पछी (से पोट्टिले देवे ) ते पोट्टिसहेवे (पोट्टिका रूवं बिउब्वइ) पोट्टिसाना उपनी विदुवारी भेटते है. वैडिय शक्तिना अलावथी, For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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