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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ___ www.kobatirth.org www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०५ स्थापत्यापुत्रनिष्क्रमणम् मूलम्-तएणं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-जइ णं तुमं देवाणुप्पिया! मम जीवियंतकरणं मच्चु एज्जमाणं निवारेसि जरं वा सरीररूवविणासिणि सरीरं वा अइवयमाणं निवारेसि, तएणं अहं तब बाहुच्छाया परिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भुंजमाणे विहरामि ॥ सू० १३॥ टीका-'तएणं से थावच्चापुत्ते' इत्यादि । ततः खलु स स्थापत्यापुत्रः कृष्णवासुदेवेनैव मुक्तः सन् कृष्णं वासुदेवमेवमवादोत्-हे देवानुप्रिय ! यदि खलु त्वं मम " जीवियंतकरणं " जीवितान्तकरणं जीवनविनाशकारकं, ‘मच्छु' मृत्यु-मरणदुःखं, 'एज्जमाणं' एजमानन्-आगच्छन्तं, निवारयसि, 'जरं वा' कारण इस का यह है कि मेरे राज्य में तुम्हें कुछ भी कष्ट नहीं होगा। मैं सदा तुम्हारी सहायता करता रहूँगा। क्यों व्यर्थ में परम कष्ट साध्य दीक्षा ग्रहण करते हो- छोड़ो इसे । सूत्र " ११" 'तएणं से थावच्चापुत्ते कण्हे णं' इत्यादि ॥ ____टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (से थावच्चापुत्ते कण्हे णं वासुदेवेणं) कुष्णवासुदेव के द्वारा इस प्रकार कहे गये उस स्थापत्यपुत्र ने (कण्हं वासदेव एवं वयासी) कृष्णवासुदेव से इस प्रकार कहा-(जाणं तुम देवाणुप्पियो मम जीवियंतकरणमच्चु एजमाणं निवारेसि जरं वा सरीरस्वविणासिणि सरीरंवा अइवलमाणं निवारेसि) हे देवानुप्रिय ? यदि आपमेरे जीवन का अन्तकरने वाली आते हुए मृत्यु को मुझ से दूर રાજ્યમાં રહેતા તમને કઈ પણ જાતની તકલીફ થશે નહિ હંમેશા હું તમારી મદદ માટે પડખે ઉભેજું શું કામ વ્યર્થ કષ્ટ સાધ્ય-કઠણ-દીક્ષા ગ્રહણ કરવા તૈયાર થયા છે છોડી આ લપને ! સૂત્ર “૧૧ ” ( तएणं से थावच्चापुत्ते कण्हेणं इत्यादि )। Atथ-(त एण) त्या२ पछी (से थावच्चापुत्ते कण्हेण वासुदेवेण) वासुदेव १३॥ रीते ४उपासा स्थापत्या पुत्रे, (कण्ह वासुदेव एवं वयासी) ४०. पासुहेपने मा प्रमाणे ५धु-( जइण तुम देवाणुप्पिया मम जीवियतकरणमन्नू एज्जमाण निवारेसि जर वा सरीररूवविणासिणि सरीर वा अइवयमाणं निवारेसि) देवानुप्रिय ! न त भा२। न न ना ४२॥२ मृत्यु ते For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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