SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 819
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवषिणी टीका अ० १३ नंदमणीकारभवनिरूपणम् ७६१ ततस्तदनन्तरं खलु राजगृहे नगरे इमामेतद्रूपां घोषणां श्रुत्वा निशम्य बहवो वैद्या यावत् कुशलपुत्रा — सत्यकोसहत्थगया य' शस्त्रकोशहस्तगताश्च हस्ते क्षुरादिशस्त्रभाजनधारकाः, 'कोसगपायहत्थगया य ' कोशकपात्रहस्तगताः चर्ममयोपकरणधारिणः, ‘सिलियाहत्थगया य' शिलिकाहस्तगता:-किराततिक्ताधौषधधारिणः 'गुलियाहत्थगया य' गुलिकाहस्तगताश्च हस्ते द्रव्यसंयोगनिर्मितवटिकाधारिणः, औषधभैषज्यहस्तगताश्च स्व केभ्यः स्वकेभ्यो निष्क्रामन्ति-निर्गच्छन्ति, निष्क्रम्य राजगृहं मध्यमध्येन यौव नन्दस्य मणिकारश्रष्ठिनो गृहं तत्रैवोपागच्छन्ति, कौटुम्बिक लोगों ने उसी के अनुसार वैसी ही घोषणा कर दी और बाद में आकर नंद को इसकी खबर दे दी । (तएणं रायगिहे इमेयारवं घोसणं सोच्चा णिसम्म बहवे वेज्जा य वेजपुत्ता य जाव कुसलपुत्ता य सत्थको सहत्य गया य कोसगपायहत्थ गया यि सलियाहत्थ गया य गुलिया हत्य गया य ओसह भेसज्ज हत्य गया य सएहिंगिहेहिं तो निक्ख. मंति, निक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्झं मज्झे णं जेणेव नंदस्स मणियारसेहिस्स गिहे तेणेव उवागच्छंति ) इस प्रकार की घोषणा सुन कर और उसको विचार कर राजगृह नगर में अनेक वैद्य, वैद्य पुत्र यावत् कुशल कुशल पुत्र, अपने २ हाथों में क्षुरादिशस्त्र एवं भाजनों को, चर्ममय उपकरणों को किरात तिक्त औषध को गोलियों को, औषध भैषज्य को ले लेकर अपने २ घरों से निकले । और निकल कर राजगृह नगर के बीच से चल कर जहाँ मणिकार श्रेष्ठी नंद का घर था वहां કૌટુંબિક લોકેએ શેઠની આજ્ઞા પ્રમાણે જ ઘેષણ (ઢઢરે) કરી અને ત્યાર पछी नहने तेनी म२ माची. ( तएण रायगिहे इमेयारूवं घोसण सोचा णिसम्म बहवे वेज्जाय, वेज्जपुत्ता य जाव कुस रपुत्ता य सत्थकोसहत्थगया य कोसगपायहत्थगया य सिलियाहत्थगया य गुलियाहत्यगया य ओसह. भेसज्जहत्यगया य सएहिं २ गिहेहितो निक्खम ति, निक्खमित्ता गयगिह नयर मज्झ मझेण जेणेव नंदस्स मणियार सेद्विस्स गिहे तेणेव उवागच्छति ) આ રીતે ઘષણ સાંભળીને અને તેના વિશે વિચાર કરીને રાજગૃહ નગરમાંથી ઘણા વિદ્ય, વિદ્યપુત્ર, યાવત્ કુશલે અને કુશલપુત્રે પિતપોતાના હાથમાં ભુરા વગેરે શસ્ત્રો અને ભાજ, ચર્મમય ઉપકરણ એટલે કે ચામડાના साधना, ति : ( रियातुं) औषधाने, गोणीमाने, औषध लेपन्य साधने પિતાપિતાના ઘરોથી બહાર નીકળ્યા અને નીકળીને રાજગૃહ નગરની વચ્ચે ५४ने ज्यां माण।२ श्रेष्टि नहेर्नु ५२ तुं त्यां पश्या . ( उवागच्छित्ता नंदस्स For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy