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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नगरीका २०१२ बातकविषये ६८७ दिशः देवाणुप्पिया ! अप्पाणं च परं च तदुभयं वा बहूहिं य असभावुभावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेण य वुग्गाहेमाणे तुप्पाएमाणे विहराहि, तरणं सुबुद्धिस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए- अहो णं जियसत्तू संते तच्चे ताहिए अवितहे सब्भूए जिणपण्णत्ते भावे णो उवलभति, तं सेयं खलु मम जियसत्तस्स रण्णो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सन्भूताणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयमहं उवाइणावेत्तए, एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पच्चतिएहिं पुरिसेहिं सद्धिं अंतरावणाओ नवए घडएय गेues, गेण्हित्ता संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि णिसंतपडिनिसंतंसि जेणेव फरिहोदए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं फरिहोदगं गेण्हावेइ गेण्हावित्ता नवएसु घडएसु गालावेइ गालावित्ता नवएसु घडएसु पक्खिवावेइ पक्खिवा - वित्ता लंछियमुद्दिते करावेइ करावित्ता सत्तरतं परिवसावेइ दोपि नवसु घडएसु, गालवेइ गालवित्ता नवएसु घडएसु पक्खिवावेइ पक्खिवावित्ता सज्जक्खारं पक्खिवावेइ लंछियमुद्दिते करावे करावित्ता सत्तरत्तं परिवसावेइ तच्चंपि वसु घडएसु जाव संवसावेई एवं खलु एएणं उवाएणं अंतरा गलामाणे अंतरा पक्खिवावमाणे अंतराय विपरिवसावेमाणे २ सत्तर राईदिया विपरिवसावेइ, तपणं से फरिहोदए सत्तमसत्तयंसि परिणममाणंसि उद्गरयणे जाए यावि होत्था अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे वण्णेणं उववेष For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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