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दिल्ली निवासी श्रीमान् लालाजी किशनचंदजी सां, जौहरीजी के वंश का संक्षिप्त जीवन
परिचय
भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली में श्री नेमीचंदजी चौरड़िया का जन्म हुआ । आप बहुत होनहार व्यवसायी और धर्मप्रेमी थे । आप बत्तीस शास्त्र के ज्ञाता थे आप जैन एवं वैदिक साहित्य के भी ज्ञाता थे । आपके पास अनेक 1 प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों के अतिरिक्त धार्मिक साहित्य का विशाल भंडार था । अल्प वय में ही आप स्वर्गारोहण कर गये । आपके सब से छोटे पुत्र श्री कपूरचंदजी चौरडिया भी आप ही की भांति निर्भीक उत्साही कर्मशील एवं धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा रखने वाले थे। बीमारी की अवस्था में भी आपने सामायिक जो कि आप का नित्य नियम था, कभी नहीं छोडा । मृत्यु के अंतिम दिन तक आपने सामायिक व्रत की आराधना की थी । लाला कपूरचंदजी ने अपने व्यापार को बहुत बढाया था । दिल्ली के गणमान्य व्यक्तियों में आपका नाम था । अनेक वर्षों तक आप समाज के प्रेसीडेन्ट रहे । आपके नेतृत्व में दिल्ली श्री संघ ने बहुत उन्नति की ।
आपके सुपुत्र श्री किशनचंदजी चौरडिया भी आप ही की भांति उद्योगी, विवेकवान एवं श्रद्धालु श्रावक हैं । प्रतिदिन सामायिक, व हर सप्ताह आयंबिल अथवा उपवास का तप करते हैं और अनेक प्रकार के धार्मिक नियम पालते हैं । धार्मिक प्रवृत्तियों में सदा दिलचस्पी से भाग लेते हैं। स्थानीय संघ की कार्यकारिणी के आप सदस्य हैं ।
काला किशनचंदजीकी धर्मपत्नी श्रीमती नगीना देवी चौरडिया प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्री एवं अनेक धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं से संबंध रखनेवाली हैं और बड़ी श्राविका हैं, आपका धार्मिक ज्ञान बहुत गंभीर है। आप विचक्षण बुद्धिवाली एवं साहित्यप्रेमी हैं । आपके निजी पुस्तकालय में अनेक अमूल्य हस्तलिखित ग्रंथों के अतिरिक्त लगभग पांच हजार पुस्तकों का संग्रह है। शास्त्रों का स्वाध्याय करना आपका दैनिक नियम है । अनेक महासतीजी महाराज भी आपके धार्मिक ज्ञान का लाभ उठाते हैं ।
श्रीमती नगीना देवी के पिता लाला धन्नोमल सुजंती दिल्ली के प्रसिद्ध रईसों में से थे। किंतु धर्म के प्रति निष्ठा एवं समाज सेवाकी लगन आपमें कूट २
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