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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ महाबलादिषट्राजस्वरूपनिरूपणम् २५२ अन्यच्च-" तीर्थङ्कर पदप्राप्तेः, स्थानकेषु च विंशतौ ।
वसन्त्याराधनार्थं यत्तस्मात् स्थानकवासिनः ॥ १॥” इति।
मूलम्-तएणं ते महब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति, जाव एगराइयं उवसंपजित्ताणं विहरंति, तएणं ते महाब्बलपामोक्खा सत्त अणगारा
खुड्डागं सीहनिकीलियं तवोकम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति, तं जहा-चउत्थं करेंति, करित्ता सव्वकामगुणियं पारोति, पारिता छठं करेंति । करित्ता चउत्थं करेंति, करित्ता अट्टमं करेंति, करित्ता छटुं करेंति, करित्ता दशमं करेंति, करित्ता अट्टमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता चाउइसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करिता सोलसमं करेंति, करित्ता चोद्दसमं करेंति, करित्ता अट्ठारसमें करेंति, करित्ता सो. लसमं करेंति, करित्ता वीसइमं करेंति, करित्ता अट्ठारसमं करेंति, करित्ता वीसइमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता अट्टा रसमं करेंति करित्ती चोदसमं करेंति, करित्ता सोलसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता चोउद्दसमं करेंति, करिता दसमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता अहमं करेंति, करित्ता देसमं करेंति, करित्ता छंढें करोति, करित्ता अट्ठमं करेंति, प्रकृति के दाता इन २० स्थानों में जो आराधना करने के निमित्त सदा वसते हैं-निवास करते हैं-वे ही स्थानकवासी कहलाते हैं। दूसरे श्लोक का भी यही भाव है । सूत्र "५" સ્થાનમાં આરાધના કરવાના પ્રયજનથી જેઓ હંમેશા નિવાસ કરે છે–વસે છે, તેએજ સ્થાનવાસી કહેવાય છે. બીજા ગ્લૅક ને પણ એજ અર્થ છે. સૂત્ર પર
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