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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - . ---- - - --- ज्ञाताधर्मकथागचे ___टीका-'तएणं सा' इत्यादि । ततस्तदनन्तरं सा कमलश्री राजी महाबलस्य भार्या, अन्यदा अन्यस्मिन् काले सिहं स्वप्ने दृष्टा प्रतिबुद्धा। यावत् वलभद्रः कुमारो जातः अत्र यावक्तरणेनायमर्थोऽवगन्तव्यः-सा स्वप्नवृत्तं भर्तुरग्रे निवेदयति ततः स्वप्नपाठकमुखात् स्वप्नफलश्रवणं यावत्-तदनन्तरं सा गर्भवती जाता. संपूर्णषु मासेषु बलभद्रनामकः कुमारः उप्तन्न इति । स युवराजश्चाप्यभवत् । तस्य खलु महाबळस्य राज्ञ इमे वक्ष्यमाणा पडपि च बालवयस्यका बालमित्राणि 'तएणं सा कमलसिरी' इत्यादि । टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (सा कमलसिरी) महाबल राजा की रानी कमल श्री ने (अन्नया) किसी एक समय (सींह) सिंह को (सुमिणे) स्वप्न में (जाव बलभद्दो कुमारो जाओ) देखा और देख कर वह प्रतिघुद्ध हो गई-जग गई- । यावत् उस के बलभद्र कुमार उत्पन्न हुआ यहां यावत् शब्द से इस पाठ का संग्रह हुआ है-कमल श्री ने स्वप्न में जो सिंह देखा था उस स्वप्न को उस ने अपने पति महाबल से कहामहाबल ने स्वप्नपाठकों को बुलाया उन्हों ने इस दृष्ट स्वप्न का क्या फल है यह बात उसे सुनाई। सुनकर सब को बडा आनन्द हुआ। कमल श्री गर्भवती हुई । नौ मास साढे सात दिन जब गर्भ को पूर्ण हो गया-तब कमल श्री के बलभद्र नाम का कुमार उत्पन्न हुआ। (जुवराया यावि होत्था) धोरे २ वह कुमार युवराज भी बन गया। (तस्स णं महाबलस्स रन्नो इमे छप्पिय बालवयंसगा रायाणो होत्था) 'तएण सा कमलसिरी' त्यादि -(तएण) त्या२माह (सा कमलसिरी) महारानी २५ भता श्रीस (अन्नया) से मते ( सीह) सिडने (सुमिणे) स्वपनमा (जाव बलभद्दो कुमारो जाओ) यो मनेने ते ७. ७. ' यावत्' समय જતાં તેને બલભદ્ર નામે કુમાર જયે. અહીં ‘યાવતુ' શબ્દથી આ પાઠનો સંગ્રહ થયે છે કે-કમલશ્રીએ જે સ્વપ્નમાં સિંહ જે હતો તે સ્વપ્ન વિષેની ચર્ચા તેણે પિતાના પતિ મહાબલને કરી મહાબલે સ્વપ્ન પાઠકને બોલાવ્યા વખપાઠકેએ તેને સ્વપ્નનું ફળ બતાવ્યું. સMફળને જાણીને બધાને ખૂબજ આનંદ થયે. કમળશ્રી સગર્ભા થઈ. ગર્ભને જ્યારે નવમાસ અને સાડા સાત દિવસ પૂરાં થયાં ત્યારે કમળશીના ઉદરથી બલભદ્રનામે કુમારને જન્મ થયો. (जुवराया यवि होत्था ) समय ५सा२ यता भार समद्र युव२४ ५५ या गया. (तस्सणं महाबलस्स रन्नो इमे छप्पियबालवयं सगा रायाणो होत्था) મહાબલ રાજાને ૬ બાલમિત્ર રાજાઓ પણ હતા. For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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