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अटोका ०६ः जीवविवये प्रश्नः
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अथ नूनं = निश्चयेन ! तत्तुभ्यं तेषामष्टानां मृत्तिकालेपानां सम्बन्धाद् ' गुरुयाए 'गुरुकतया 'भारिययाए' भारिकतया दर्भकुशमृत्तिकानां भारेण भाराक्रान्तातया, अतएव - ' गुरुयभारिययाए ' गुरुकभारिकतया उक्त हेतुद्वयस्य सद्भावेन शीघ्रनिमज्जनस्वभावता प्रदर्शिता उपरि सलिलमतिव्रज्य - अतिक्रम्य परित्यज्य अधोनीचैः धरणीतलप्रतिष्ठानं पृथ्वीतलं प्रतिष्ठानमाधारो यस्य तत् भवति भूमितलमाश्रित्य तिष्ठतीत्यर्थः ।
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एवमेव गौतम ! जीवा अपि प्राणातिपातेन यावद् मिथ्यादर्शनशल्येन आनुपुर्या अष्टकर्मप्रकृतिः समर्जयन्ति, तासां गुरुकतया भारिकतया गुरुकमारिकउदगंसि पक्खिवेज्जा ) इस तरह के उपायसे वीच २ में वेष्टित कर बीच २ में लिंपकर बीच २ में सुका कर जब आठ बार मिट्टी के लेप से उसे वह लिप्त कर चुकता है और बाद में उसे अगाध गहरे पानी में कि जो अतार तथा पुरुष प्रमाण से अधिक है डाल देता है ' अत्थाह यह देशीय शब्द है और इसका अर्थ अगाध होता है ( से शृणं गोयमा से तुंबे तेसिं अहं मट्टियालेवाणं गुरुयात्ताए भारिमत्ताए गुरियारि यता उपि सलिलमहवत्ता अहे धरणियलपट्टणे भवह) तो निश्चय से हे गौतम! वह तुंबी उन आठ बार के मिट्टी के लेपों के संबंध से गुरु हो जाने के कारण और ८ बार के दर्भ कुशों के भार से वजन दार हो जाने के कारण जैसे शीघ्र ही ऊपर में पानी को छोड़ कर नीचे पानी के बैठ जाती है ( एवामेव गोयमा ! ) इसी तरह हे गौतम । ( जीवा वि पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं अणुपुत्रेणं अट्टम्म पगडीओ समज्जिणंति ) जीव भी प्राणातिपातया
પ્રમાણે તુખીને આઠ વખત દાભ અને કુશાથી વીંટાળીને તથા આઠ વખત માટીને લેપ કરીને તાપમાં સુકવે છે ત્યાર બાદ તેને ઉંડા 6 અતાર 'तेम पुरुष प्रमाण ४२तां पधारे धेश पाणी नाजीहे छे. ( अथाह ) मा देशीय शब्द छे भने तेन! अर्थ आगाध होय ते. ( से णूणं गोयमा ! से तुबे तेसि अदृह महियाले वाणं गुरूयात्ताए भारिंयत्ताए गुरियमारियत्ताए उपिं सलिलमइ वइत्ता अहे धरणिय ठाणे भवइ ) हे गौतम! पाणीभां नामेसी ते तुजी આઠ વખત માટીના લેપથી ભારે થઇ જવાને કારણે તેમજ આઠ વખત દાભ તથા કુશના ભારથી ભારે થઇ જવાને લીધે પાણીમાં નાખતાની સાથે જ पाणी मां नीचे न्ती रहे छे अर्थात् इसी लय छे. ( एवामेत्र गोयमा ! ) मा प्रभा डे गौतम ! ( जीवा व पाणाइवारण जाव मिच्छाद सण सल्लेण अणुपुवेण अङ्कुकम्म पगडीओ समज्जिणंति ) व पशु प्राशातिपात यावत्
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