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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org २७० ज्ञाताधर्मकथासूत्रे मूलम् - तरणं से इंदभूई जापसङ्के० समणस्स३ एवं वयासी - कहणणं भंते! जीवा गुरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छति ? गोयमा ! से जहा नामए केइ पुरिसे एगं महं सुकं तुंबं णिच्छिडुं निरुवहयं दं भेहिं कुसेहिं वेढेइ, वेढित्ता महियालेवेणं लिंपइ लिंपित्ता उन्हे दलयइ, सुक्कं समाणं दोच्चंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ वेढिता महियालेवेणं लिंपइ लिंपित्ता उन्हे सुक्कं समाणं तचंपि दन्भेहि य कुसेहि य वेढेइ वेढित्ता महियालेवेणं लिंपइ । एवं खलु एएणुवाएर्ण अंतरा वेढेमाणे अंतरा लिंपेमाणे अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अट्ठहिं महियाले हिं आलिंपइ, अत्थाहमतारम पोरिसियसि उद्गंसि पविखवेजा, से णूणं गोयमा ! से तुंबे तेसि अट्टहं मट्टियालेवाणं गुरुयत्ताए भारियन्त्ताए गुरुयभारित्ताए उपिं सलिलमाइवइत्ता अहे धरणियल इट्टाणे भवइ । एवामेव गोयमा ! जीवा वि पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं अणुपुव्वेणं अटुकम्मपगडीओ समजिणंति, तासिं गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुयभारिय ताए कालमासे कालं किश्च्चा धरणियलमइवइत्ता अहे नरगतल पट्टाणा भवंति एवं खलु गोयमा ! जीवा गुरुयत्तं हव्वमागच्छंति ॥ सू० २ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दभूई अदूरसामंते जाव धम्मज्झाणोवगए विहरह) श्रमण भगवान् महावीर के प्रधान अतेवासी जिनका नाम इन्द्रभूतिया उचित स्थान पर बेठे हुए धर्म ध्यान में तल्लीन थे । सूत्र- १ विरइ) श्रम लगवानना प्रधान सतवासी इन्द्रभूति उचित स्थाने मेठेला ધર્મ ધ્યાનમાં તલ્લીન હતા. ।। સૂત્ર ૧ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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