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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमगारधर्मामृतषिणी टीका अ० ५ शैलकराजचरितनिरूपणम् १३५ कस्मिंश्चित् काले पूर्वानुपूर्या चरन् यावत्-यत्रैव शैलकपुरं नामनगरं यत्रैव सुभूमिभागं नामोद्यानं तत्रैवोपागच्छति उागत्यच यावद् संयमेन तपसा स्वात्मानं भावयन् विहरति । परिवनिर्गता मण्डूकोऽपि निर्गतः, यत्र शैलकोऽनगारस्तत्रागत्य शैलकमनगारं यावद् चन्दते नमस्यति, वंदित्वा नत्वा स मण्डूकः पर्युपास्ते सेवते स्म । ततः खलु स मण्डूको राजा शैलकस्यानगारस्य शरीरं शुष्क रूक्षं यावत्-सव्यावाधं-पीडितं सरोग-रोगाक्रान्तं पश्यति दृष्टा एवमवादीत्-अहं खलु भदन्त ! खाने पीने की रुचि जाती रही। (तएणं से सेलए तेणं रोगायकेण सुक्के जाए यावि होत्था तएणं से सेलए अन्नया कयाईपुवाणुणुवि चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरइ) इससे वे शैलक अनगार उस रोग से-सामान्य ज्वरादि व्याधि से, आतंग से-प्रबलतर मस्तक शूलादि शीघ्रघातक व्याधि से-सूख गये-बिलकुल दुबले पतले शरीर वाले हो गये। किसी एक समय पूर्वानुपूर्वी से विहार करते हुए ये जहां शैलक पुर नगर और उसमें भी जहां सुभूमि भाग नाम का उद्यान था वहां आये । तप और संयम से अपने आत्माको भाक्ति करते हुए ये वहां ठहर गये । (परिसा निग्गया मंडुओ वि निग्गओ, से लयं अणगारे जाव वंदह, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, पज्जुवासह ) जनता वंदना करने के लिये आई मंडूक भी आया। सबने शैलक राजऋषि को वंदना की नमस्कार किया। वंदना नमस्कार करके मंडूक राजा ने उन की सेवा की। (तएणं से मंडुए राया सेलयस्स अणगाअभी 25 गयो डतो. (तएण से सेलए तेण गेयाय केण सुक्के जाए यावि होत्था तएण से सेलए अन्नया कयाई पुव्वाणुपुचि चरमाणे जाब जेणेव सुभूमि भागे जाव विहरइ) तेथी शैस४ सनसार सामान्य थी मात से સખત રોગથી સૂકાઈ ગયા. સાવ દૂબળ થઈ ગયા. કેઈ વખતે પૂર્વાનુ પૂર્વ થી વિહાર કરતાં શૈલક અનગાર શૈલક પુર નગરના સુભૂમિભાગ ઊદ્યાનમાં આવ્યા, અને તપ અને સંયમથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતાં તેઓ त्यो ।या. (परिमा निग्गया मंडुओ वि निगाओ सेलय' अणगारे जाव वंदइ, नमंसइ वदित्ता, पज्जुत्रासइ) तेभने वन ४२१। भाट नागरीनी परिषद નગરની બહાર નીકળી. ત્યાં પોંચીને બધા નાગરિકોએ શૈલક રાજઋષિને વંદન અને નમસ્કાર કર્યા. વંદન અને નમસ્કાર કરીને મંડૂક રાજાએ તેમની સેવા ४३१. (तएण से मंडए गया सेलयस्स भणगारस्स सरीरय सुक्क भुक्क जाव For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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