SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्मकथागसूत्रे ततः स्थापत्यापुत्रवचनश्रवणानन्तरं खलु स सुदर्शः संबुद्धः सम्यक्त्वमारुढः सन् स्थापत्यापुत्रं वन्दते श्रुतचारित्रलक्षणसद्धर्मसमाराधनेन धन्योऽसि भगवन्नित्यादिवाक्येन स्तौति-इत्यर्थः । नमस्यति स्वापकर्ष बोधयन् श्रद्धेयवचनतया गुरू भावेन विनयं प्रकटयन् कायेन प्रणमतीत्यर्थः । वन्दित्वा नत्वा एवं वक्ष्यमाणपाकारणावादी-३च्छामि खलु भदन्त ! हे भगवान् ! धर्म-विनयमूलकं भवदुक्तं श्रुतचारित्रलक्षणं श्रुत्वा ज्ञातुम् , जीवराजीवपुण्यपापासवसंबरनिर्जराबन्धमोक्षरूपाणितत्वानि सम्यक सर्वथा वेत्तुमित्यर्थः यावत्-यावत् करणादत्र धर्मश्रवणजीवाजी. वादितत्वज्ञानानन्तरं श्रावकधर्मस्वीकारेण, श्रमणोपासको जोतः, स कीदृश इत्याह -अधिगतजीवाजीवो यावत् प्रतिलाभयन् सत्कारयन् समानयन् विहरति ॥२१॥ से सुदंसणे संयुद्धे थावचा पुत्तं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी) इस प्रकार संबोधित हुए सुदर्शन सेठने स्थापत्यापुत्र अनगार की हे भगवान् श्रुतचारित्र रूप धर्म के आराधन करने वाले होने से आपको धन्य है इत्यादि बचनो द्वारा वंदना की नमस्कार किया। वंदना नमस्कार कर फिर उसने उनसे इस प्रकार कहा (इच्छामि णं भंते ! धम्म सोच्चा जाणित्तए जाव समणोवासए जाए-अहिगया जीवा जीवे जाव पडिलामेमाणे विहरइ ) हे भदंत ! विनय मूलक श्रुतचारित्र रूप धर्म को सुनकर मैं जीव, अजिव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष इन तत्त्वों को जानना चाहता हूँ। इस प्रकार वह धर्मश्रवण और जीवाजीवादितत्त्वों के बाद श्रावक धर्म स्वीकार कर श्रमणोपासक बन गया। श्रमणोपासक बनकर फिर उसने स्थापत्यापुत्र अनगार का आहार आदि प्रदान कर सत्कार किया-सन्मान किया। કર્યા. વંદના અને નમસ્કાર કરીને તેમણે સ્થાપત્યા પુત્ર અનગારને વિનંતિ કરી -(इच्छामि णं भंते ! धम्म सोच्चा जाणित्तए जाव समणोवासए जाए अहिंगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ) मत ! विनयभूमर श्रुतयारित्र રૂપ ધર્મની વાત સાંભળીને હું હવે જીવ, પુણ્ય, પાપ, આસવ, સંવર, નિજેરા, બંધ અને મોક્ષ આ આ તને સ્પષ્ટ રૂપે સમજવાની ઈચ્છા રાખુ છું. આ પ્રમાણે સ્થાપત્યા પુત્ર અનેગાર ના મઢેથી આ બધાં જીવ અજીવ વગેરે ત વિષે સાંભળીને શેઠ શ્રાવક ધર્મ સ્વીકારીને શ્રમણોપાસક થઈ ગયા. શ્રમણોપાસક થઈને શેઠે સ્થાપત્યા પુત્ર અનગારને આહાર વગેરે અપીને સત્કાર કર્યો સન્માન કર્યું. For Private And Personal Use Only
SR No.020353
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages845
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy