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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८९ अनगारधर्मामृतगिीटीका अ. ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् देवदत्ताया गिका या गृहं वर्तते तत्रोपागच्छत', उपागत्य प्रवहणात प्रत्यव. रोहतः प्रत्यवरुह्य देवदत्तायो गणिकाया गृह मनुप्रविशतः ततस्तदनन्तरं खलु सा देवदत्तो गणिका तो सार्थवाहदारको एजमानौ-आगच्छन्तौ पश्यति, दृष्ट्वा हृष्टतुष्टाअतिशयेन प्रमुदिता, अद्य मम भाग्योदयो जातो यत एताविभ्यपुत्रौ मम गृहे आगताविति विचार्य स्वासनादभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय सप्ताऽष्टपदान्यनुगच्छति अभिगच्छति अनुगम्य, तयोः संमुखं गत्वा तौ सार्थवाहदारको प्रत्येवं वक्ष्यमाणप्रकारेगावादीत् 'संदिसंतु णं' सन्दिशन्तु आदेशं है (पवहणं दुरूहति) उस प्रवहण पर सवार हुए। (दुरूहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहं तेणेव उवागच्छंति) सवार होकर जहां देवदनाका घर था वहां पहुँचे । (उवागच्छित्ता पवहणाओ पच्चोरुहंति) पहुँच कर वे उसे प्रवहण से नीचे उतरे। (पच्चारुहिता देवदत्ताए गणियाए गिह अणुपविसंति) नीचे उतरकर देवदत्ता गणिका के घर में प्रवेश किया (तएण सा देवदत्ता गणिया सस्थवादारए एजमाणे पासइ) देवदत्ता गणिकाने उन दोनों सार्थवाह पुत्रोको आते हुए देखा (पोसित्ता हतु: आसणाओ अब्भुटेइ) देखकर बड़ी अधिक प्रसन्न हुई उसने विचारा आज मेरे भाग्य का उदय हुआ है, जो ये दोनों इभ्यपुत्र मेरे घर पर आये हैं इस प्रकार विचार कर वह अपने प्रासन से उठी-(अब्भुहिना सत्तापयाई अणुगच्छइ) उठ कर वह सात आठ पर और सामने गई (अणुगांच्छत्ता ते सत्यवाहदारए एवं बयासी) जाकर उसने उन सार्थवाह दारकों से इस प्रकार कहा (संदिसंतु णं देवाणु सो धारण ४या. (पवहणं दुरूहति) अने प्रवड (Aarul) मा येही (दुरूहित्ता जेणेव देवदत्ताए गणियाए गिहं तेणेव उवागच्छंति) मेसिने तेसो हेहत्ताने ३२ पडया. (उवागच्छित्ता पवहणाओ पचोरुहंति) त्यां पडांचीने तेसो प्र१७ भांथी नीय उतयां (पच्चोरुहिता देवदत्ताए गणियाए गिह अणुपवितंति) नये उतशन gst वित्ताना घरमा प्रविष्ट थया. (तए ण' सा देवदत्ता गणिया सत्यवाहदारए एजमाणे पासइ) 0 हेपत्ताये माने सार्थवाड पुत्रोने भावता नया. (पासित्ता हट्ट तुट्ठ आसणाओ अब्भुटेइ) नि ते भूम " प्रसन्न થઈ અને તેને થયું કે આજે મારે ભાગ્યોદય થયે છે કેમકે આ બંને ઈભ્યપુત્રો (શેઠિયાના પુત્રો) મારે ઘેર આવ્યા છે. આ રીતે વિચાર કરીને તે પિતાના આસન ५२थी ली 25 (अन्भुट्टित्ता सत्तटुपयाई) ली थने ते सात-2418 पद सामे ४. अणुगच्छित्ता ते सत्यवाहदारए एवं वयासी) सामे न तणे सावा पुत्रोन ध्यु --- (मंदिसंतु ण देवाणुप्पिया! किमिहागमणप्पओयण) For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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