SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनमारचर्मामुनवणारीका अ. २. धन्यस्य विजयेनसहडिबन्धनादिकम् ६३५ बादिना संस्कारपूर्वकं पचति, उपस्कृत्य 'भोयणपिडयं' भोजनपिटक भोजन भरणाय पिटकं सम्पुटकम्तं 'पिटारा' 'कटोरदान' 'डब्बा' इति. सम्प्रति काले 'टीफनयोक्स' इति च प्रसिद्ध 'करेइ करोति-सजयति, कुत्ता मजयित्वा तम्मिन् 'भोयणाई" भोजनानि-खाद्यपदार्थानि 'पक्विवई' प्रक्षि पतिशापनि प्रक्षिप्य 'लंछिप दियं' लामिछ।मुद्रिा लाजितं रे वादिचिह्न युक्त, मुद्रितं लाक्षादिमुद्रासहितं 'करेइ' करोति-सज्जयति, कन्वा एकंच _ 'सुरभिवरवारिपडिपुन' सुरभिवरवारिप्रतिपूर्ण-सुरभि केतकीपाटलादि सुगन्धवासितं वरं श्रेष्ठ स्वच्छ वारिजल, तेन प्रतिपूर्ण-भृतं 'दगवारयं' दकवारक-जलपात्रविशेष 'झारी' इति भाषा प्रसिद्ध जलपात्र 'करे।' करोति-सज्जयति, कुन्वा, पान्य दासवेटकं शब्दयति शब्दयित्वा एवमवादी-गच्छ नाव जलंते विउल असणं ४ उपक्खडेड) इसके बाद उस भद्रा सार्थ. वाढीने दूसरे दिन प्रातः काल जब सूर्यप्रकाशित हो चुका तब ४ पकारका आहार हौयार किया--(उचक्खडित्ता भोयणपिडयं करेई-- करित्ता भोयणाई पक्विवइ, लंछियमुहियं करेइ,--करित्ता एगंच मुरभिः वरवारिपडिपुन्नदगवारयं करेइ) जव आहार निष्पन्न हो चुका तब उसने उसके रखने के लिये एक कटोरदान तैयार किया। जब कटोरदान साफ सुथर रूप से तैयार हो चुका नब उसमें उसने आहार को रख दिया--आहार रखकर फिर उसे लाख की मुद्रा से मुद्रित कर दिया। कटोरदान को मुद्रित करने के बाद फिर उसने एक सुगंधित उत्तम जल से प्रतिपूर्ण झारी को तैयार किया । (करिता पंथयं दासचेड सदावेइ, सदाविता एवं वयासी) झारी तैयार कर उसने फिर पायक दास चेटक को बुलाया--और बुलाकर उसने इस प्रकार कहा-- भरियाकल्लं जाव जलंते विउलं असणं ४ उवक्खडेइ) त्या२ मा मद्रामार्या સાર્થવાહીએ બીજા દિવસે સવારે સૂરજ ઉદય પામતાં ચાર જાતને આહાર તૈયાર કરાવડાવ્યો. (उक्खडिसा भोयणपिडयं करेई करित्ता भोयणाई पक्खिबइ, लंछियमुद्दिय करेइ, करिएगं च मुरभिारवारिपडिपन्नदगवारयं करेइ) माडा न्यारे तयार થઈ ગયે ત્યારે તેણે આહારને મૂકવા માટે બે હૈયાર કર્યો ત્યારે સાફ પાણીથી બે ધોવાઈને સાફ થઈ ગયે ત્યારે તેમાં આહાર મૂકી દીધા. આહાર મૂકીને લાખ વગેરે લગાવીને તેને બરાબર બંધ કરી દીધા. ડબાનું “સી” કરીને તેણે એક સુવાસ युत reी पूर्ण मरेकी आरी तैयार ४A.(करित्ता पंथयं दासवेडं सदावेइ. सहवित्ता एवं वयासो) आरी तैयार ४शन ते पायास थेटने माता-यो. अने For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy