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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 6 अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ०२सूत्र. १ राजगृह जीर्णोद्यानवर्णनम् तस्य खलु जीर्णोद्यानस्य बहुमध्यदेशभागे अत्र खलु महानेको भग्नामीत् तस्य खलु भग्नक्पस्य अनूरसामंते अत्र खलु महाने : मालुया कच्छर' मालुका कक्षकः मालुकाः एकास्थिफल वृक्षविशेस्तेषां कक्षक वनम् चाप्यासीत् । सकोदृशः १ इत्याह- 'कहे किort भासे' कृष्णः कृष्णावभासः, तत्र - कृष्णः = कृष्णवर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६९ " देवकुल का अर्थ यहां व्यंतर का आयतन है । इस व्यन्तरायतन संबन्धी जितने घर थे उन सबके भी यहाँ बहिर्द्वार नष्टप्राय हो चुके थे। यह जोर्ण उद्यान अनेक प्रकार के गुच्छों से कपास के जपा पुत्रों आदि के गुच्छों से-- वंशजाली आदि गुल्मों से अशोकलता आदि लताओं से पुत्री ( ककड़ो ) आदि बेठों से, आम्र आदि वृक्षों से आच्छादित हो रहा था। इसमें अनेक प्रकार के सैंकडों सर्प इधर से ऊधर फिरते रहते थे अत: उनके द्वारा यह विशेष भयंकर बना हुआ था । ( तस्स णं जिन्तुज्जणस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे भग्मत्रए यात्रि हो स्था) इस जीर्ग उद्यान के ठीक मध्य भाग में एक बडा भारी भग्न जीर्ण हुआ कुंआ भी था ( तस्स णं भग्गक्त्रस्य अदूरसामंते एत्थ णं महंएगे मालुया कच्छए यात्रि होत्था ) उस भग्न कुएँ के न अति समी और न अति दुर--पास में मालुका वृक्षों का बहुत बडा गहन वन था । एकास्थिकर वाले वृक्ष विशेयों का नाम मालुका है ( किन्हे किडो आसे जान रम्मे महामेह निउरंवभूए बहूर्हि रुक्खे हिय गुच्छेदिय गुम्मे For Private and Personal Use Only છે. આ અન્તરાયતનનાં જેટલાં ઘર હતાં, તે બધાના બહારના દરવાજા નષ્ટપ્રાય થઇ ગયા હતા. જૂનું ઉદ્યાન ઘણી જાતના ગુચ્છ,-એટલે કે વણુ અને જપાપુષ્પ વગેરેના शुभेछा-वंशलती वगेरे गुहमा अशोऽसता वगेरे सतायो, त्रयुसी (अम्डी) वगेरेनी वेब, આમ્ર વગેરે વૃક્ષાથી ઢંકાએલા હતા. ઘણી જાતના સેંકડા સાપ આ ઉદ્યાનમાં આમથી तेम वियरता रहता हुता. मेथी या उद्यान सविशेष लयपुर सागतु तु. ( तस्सणं जिन्तुजागस्स बहुमप्रदेसभाए एत्थ एगे भग्गकूपए यावि होत्था) આ જૂના ઉદ્યાનની ઠીક વચ્ચેાવચ્ચ એક મોટા ભગ્નક્રૂપ નામે એક જીણુ થયેલા કૂવા હતા. ( तस्स भग्गस अदुरसामते एत्थण मह एगे मालुया कच्छए याविहोत्था) તે ભગ્ન કૂવાની વધારે દૂર પણ નિહ અને વધારે નજીક પણ નહિ કહેવાય એવું પાસે માલુકા વૃક્ષાનું માટુ' સઘન વન હતુ. એકાસ્થિફળ વૃક્ષ વિશેષનું નામ માલુકા છે, (कि किन्ही मासे जाव रम्मे महामेहनिउरं बभूए बहूहिं रूक्खे हि य गुच्छे हिय.
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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