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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधमकथाङ्गरने संलेखनया आत्मानं जोषयित्वा षष्टिं भक्तानि अनशनेन छेदायत्वा आलो. चितमतिक्रान्तः उतशल्यः समाधिपाप्तः कालमासे कालं कृत्वा उर्ध्वं चन्द्रमः सूर्यग्रहगणनक्षत्रतारारुपाणां बहूनि योजनानि, बहूनि योजनशतानि, बहूनि योजनसहस्राणि, बहूनि योजनशतसहस्राणि, बवीर्योजनकोटीः, बाजिन कोटिकोटीः, उर्व दूरम् उत्पत्य, सौधर्मशानसनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोक लान्तकमहाशुक्रमहस्रारानतपाणताऽऽरणाच्युतान् त्रीणि च अष्टादशोत्तराणि पूर्व दिशा की तरफ मुख करके पद्मासन से विराजमान हो गये। वहां पच महाव्रतों का जिन्होंने स्वयं उच्चारण किया (बारसवासाई सामण्ण परियागं पाउणिना मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेना आलोइयपडिक्कंते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते) तथा १२, वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर १ मास की संलेखना से अपने आपको कृश कर सोठ भक्तो का अनशन द्वारा छेदकर, आलो. चित प्रतिक्रान्त होकर और जो मायादि शल्यों को दूर कर सकल्प विकल्पो से वर्जित हुए अंतमें और (कालमासे कालं किच्चा) जो कालमास में काल धर्म को प्राप्त हो गये हैं। इस तरह मृत्यु के वश होकर वे (उडः चंदिममरगहगणणखत्ततारारूवाणं वहूइं जोयणसयाइ बहूइंजोयणसयसहस्साई बहूई जोयणकोडीओ बहूइ जोयणकोडाकोडीओ उड' दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदवंभलोयलंतगमहामुक्कसहस्साराणयपाणयोरणच्धुए तिण्णिय अट्ठारसुत्तरे गेवेज्जविमान 45 गया. त्यां पायतानु तेभरे ते अश्या२९ यु. (बारसवासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाण झूसित्ता सर्टि भतइ अणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कते उद्धियसल्ले समाहिएत्ते) બાર વર્ષના શ્રાપ્ય પર્યાયનું પાલન કર્યા બાદ એક મહિનાની સંખનાથી પિતાને દૂબળા બનાવીને સાઈઠ ભકતોને અનશન વડે છેદીને, આચિત પ્રતિકાન્ત થઈને भने भाया वगेरे शल्याने २४शन स४८५-विxeपाथी २हित थ ने मते (कालमासे काल किच्चा) भासमा ण धने पाभ्या छ. 24. प्रमाणे भृत्युक्ते थये। मुनिरा भेषभा२ ( ट चंदिमसूरगहगणणवखत्तताराख्वाणं बहूई जोयणसयाइ बहूइ जोयणसयसहस्साई बहूई जोयणकोडीओ बहुई जोयणकोडाकोडीओ उर्दु दूर उप्पहत्ता सोहम्मीसाणसण कुमार माहिंदवंभलोयलंतगमहासुक्कसहस्साराणयपाणयारणच्चुए तिणिय For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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