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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.१सू ४४ मेघमने ईम्तिभववर्णनम् पसित्ता पोणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए से पाए अंतराचेव संधारिए, नो चेव णं णिक्खित्ते, तएणं तुमं! ताए पाणाणुकंपयाए जाव सत्ताणुकंपयाए संसारे परित्तीकए माणु. स्साउए निबद्धे । तएणं से वणदवे अडाइजाइं राइंदियाइं तं वणं झामेइ झामित्ता निट्रिए उवरए उवसंते विज्झाए याविहोत्था। तएणं ते बहवे सीहा य जाव चिल्लला य तं वणदवं निट्रियं जाव विज्झायं पासंति पासित्तो अग्गिभयविप्पमुक्का तण्हाए य छुहाए य परब्भाहया समाणा मंडलाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता सवओ समंता विप्पसरित्था। तएणं तुमं मेहा! जुन्ने जराजजरियदेहे सिढिलबलियया पिणद्धगत्ते दुव्बले किलंते जुजिए पिवासिए अत्थामे अबले अपरकमे अचंकमणे वा ठाणुखंडे वेगेण विप्पसरिस्सामित्तिकट पाए पसारेमाणे विजुहए विव रयय-गिरिपब्भारे धरणितलंसि सव्वंगे हय सन्निवइए । तएणं तव मेहा ! सरीरगति वेयणा पाउब्भूया उजला जाव दाहवर्कतिए यावि विहरांस। तएणं तुम मेहा! तं उज्जलं जाव दुहियासं तिन्निराइंदियाइं वेयणं वेएमाणे विहरित्ता एगं वाससयं परमाउं पालइत्ताइहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रन्नो धारिणीए देवीए कुच्छिसि कुमारत्ताए पञ्चायाए॥सू०४४॥ __टोका--'तएणं तुम !' इत्यादि । ततः खलु हे मेघ ! त्वम् अन्यदा कदाचित् क्रमेण 'पंचसु उउसु पश्चमु-प्राट्-वरात्रशरद-हेमन्त-वसन्तेषु 'तए णं तुम मेहा-इत्यादि टीकार्थ-(तए णं) इसके बाद (मेहा) हे मेघ ! (तुम) तुम (अन्नया कयाई) किसी समय--अर्थात उस समय जब कि (कमेणं ) क्रमक्रम मे पंचसु'तए णं तुम मेहा इत्यादि --(तए णं) त्या२ मा४ ( मेहा ) 3 मे ! (तुमं ) तमे ( अन्नया कयाई) | भेटवे ? (कमेणं) मनु (पंचसु उऊसु) प्राट, वर्षा, For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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