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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૨ ज्ञाताधर्म कथाङ्गसुन्ने लंसि कूलंसि विंझगिरि पायमूले दवग्गिसंताण कारणटा सएणं जूहेणं महइमहालयं मंडल धाइत्तए त्तिक एवं संपेहेसि संपेहिता सुहं. सुहेणं विहरसि। तएणं तुम मेहा ! एनया कयाई पढमपाउसंसि महावुट्टिकायंसि सन्निवाइयंसि गंगा महानईए अदूरसामते बहू हिं हत्थिणीह जाव कलभियाहिय सत्तहिय हथिणीसएहिं संपरिबुडे एगं महं जोयणपरिमंडलं महइमहालयं मंडलं घाए[स, जं तत्थ तणं वा पत्र वाकडं वा कंटए वालया वा वल्ली वाखाणू वा रुक्खेवा सुखेवा, तं सव्वं तिक्खुत्तो आहुणियर उट्ठवेसि, हत्थेणं गिण्हसि, गिमिहत्ता एगंते एडेसि एडित्ता, तएणं तुम ! मेहा ! तस्सेव मंडलस्स अदूरसामंते गंगाए महानईए दाहिणिल्ले कूले विझागरिपायमूले गिरिसु य जाव हिरसि। तएणं तुम मेहा ! अन्नया कयाई मज्झिमए वरिसारतं स महा बुष्ट्रिकार्यसि सन्निवाइयंसि जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता दोच्चपि मंडलं घाएसि, ऐवं चारमे वासा रतसि महावुद्रिकायंसि सन्निव इयंसि जेणेव से मंडले तेणे उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तञ्चपि मंडलघायंकरेसि जंतत्थ तणं वा जाव सुहं सुहेणं विहरसि ॥सू० ४२॥ टीका-'तएणं तुम मेहा' इत्यादि, हे मेघ ! ततः हस्तिनो द्वितीयभवे मुग्यपूर्वकं शिशुक्रीडानुभवानन्तरं खलु 'उम्मुक्कबालभावे' उन्मुक्तबाल 'तए णं तुम मेहा' इत्यादि । टीकार्थ-इस प्रकार अपनी इस हाथी की दूसरी पर्याय में सुख पूर्व क्रीडा सुखों का अनुभव करने के बाद (तुम मेहा ।) हे मेघ ! 'तए णं तुम मेहा!' इत्यादि टी---(तएणं) २ प्रमाणे हाथीना पोताना ! मी पर्यायमा सुमेथी sी सुमो अनुभवता (तुमं मेहा !) हे भेष ! तमे धीमे धीमे उम्मुक्कयाल For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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