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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथासूत्रे ४२० गुण सिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पुरिससहस्सवाणिओ सीयाओ पच्चोरहइ ॥ सू० ३६ ॥ टीका- 'तरणं' इत्यादि । ततः खलु तस्य मेघकुमारस्य राजगृहस्य नगरस्य मध्यमध्येन निर्गच्छतः 'बहवे अत्थस्थिया' बहवोऽर्थार्थिनः=द्रव्यार्थिनः 'कामथिया' कामार्थिनः स्वेच्छा पूरणार्थिनः यद्वा - शब्दरूपार्थिनः, 'भोगन्थिया' भोगार्थिनःगंधरसस्पर्शार्थिनः, 'लामस्थिया' लाभार्थिनः = पारितोषिकादि प्राप्त्यर्थिनः, 'किब्बिसिया' किल्बिषिका - किल्विषं पापमस्ति येषां ते पापवन्तः अनाथान्धपङ्गवादयः, 'करोडिया' करोटिकाः = कापालिकाः खर्परधारिणः इत्यर्थः ' कारवाहिया' कारवाहिकाः करं - राज्ञे देयं द्रव्य वहन्तीति, 'तरणं तस्स मेहस्स कुमारस्स ' इत्यादि । टीका - ( तरणं तस्स मेहस्स कुमारस्स ) इसके बाद जब वे मेघ कुमार ( रायगिहस्स नगरस्स मज्झं मज्झेणं ) राजगृह नगर के ठीक बीचोंबीच होकर ( निग्गच्छमाणस्स ) निकल रहे थे उस समय उन्हें ( बह वे अत्थस्थिया ) अनेक अर्थाभिलाषियोंने ( कामत्थिया ) अनेक कामार्थियोंने-- स्वेच्छा पूरणार्थियोंने--अथवा शरूप के अर्थियोंने ( भोगत्थिया ) अनेक भोगार्थियोंने--- गंधरस स्पर्श के अभिलाषियोंने-- (लाभत्थिया ) अनेक लाभार्थियोंने--पारितोषिक आदि की प्राप्ति की कामनावालौने(किव्वसिया ) अनेक अनाथ, अन्धे और पण आदि व्यक्तियोंने ( करोडिका ) अनेक खप्पर धारियोंने खप्पर धारण करने वाले भिक्षुओंने, ( कारवाहिया ) अनेक कारवाहिकोने -- जिन पर राज्य का टेक्स बकाया था --- 'तएण तास मेहस्स कुमारस्स' इत्यादि टीअर्थ - (तरणं तस्स मेहस्स कुमारस्स ) त्यारमाह भेघहुभाह ( रायगिस्स नगरस्समयं मज्झणं ) रामगृह नगरनी ही वस्थवस्थ थाने ( निगच्छ माणस्स ) पसार थ रह्या हुता ते वसते तेभने ( बहवे अत्थत्थिया ) धाशा अर्थाभिद्याषीमोये ( कामस्थिया ) धा अभार्थी भनोये पोतानी इच्छाने पूर्ण १२वानी अभिलाषा रामनारा भाणुसोये ( भोगत्थिया) घणा लोगार्थी आगे, भेटले For Private and Personal Use Only गंधरस मने स्पर्शना अभिलाषीने थे, ( लामत्थिया ) धणा साल भेजवવાની ઇચ્છા રાખનારા માણસોએ-ઈનામ વગેરેને મેળવવાની ઇચ્છાવાળાઓએ, ( किच्चिसिया ) धा अनाथ, सांधणाओ, तेभन अपंग वगेरे भाणुसोये (करोडिका) धा अग्रधारी लिमारीओगे, ( कारवाहिया) घाला अश्वाहिसे भेंटसे
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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