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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्मकथा तानन: कुण्डलपरिघारणेन प्रकाशितमुख. मउडदित्तसिरए' मुकुटदीप्तशिरस्का-मुकुटशोभितमस्तकः, 'अहियरायतेयलच्छीए' अभ्यधिकराजतजो. लक्ष्म्या-अभ्यधिकं सातिशयं राज तेजः पूर्वोपर्जित प्राप्ताधिकारस्य तेजःप्रभावः तस्य लक्ष्मोः शोभा तया 'दिपमाणे' दीप्यमानःशोभमानःसकोरंटमाल्यदाम्ना, कोरण्टपुष्पमालायुक्तेन धरिजमाणेणं' ध्रियमाणेन भृत्येनेति भावः। छत्तेण' छत्रेण युक्तः 'सेयवरचामरेहिं' श्वेतारचामराभ्यां 'उद्धव्यमाणेहि उडूयमानाभ्यां-वोज्यमानाभ्यां युक्तः हयगयपवरजोहकलिगाए' हयगजपवरयोधकलितया, चतुर्राङ्गण्या सेनया 'समणुगम्ममाणमग्गे' समनुगम्यमानमार्गःसम् सम्यक्प्रकारेण अनु पश्चात गम्यमानो मागों यस्य स मेघकुमारः यत्रै. वगुणशिलकं चैत्यम्-सुद्यते= | उद्यानं तत्रैव पहारेत्थ गमणाए' गमनाय प्रधाहारोत्थ य मुकयरइयवच्छे कुंडलोज्जोइयाणणे, मउडदित्तसिरए, अहिय गयतेयलच्छीए दिप्पमाणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं से यवरचामराहिं उधुवमाणीहिं हयगयपवरजोहकलियाएहिं चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे) इसके बाद वह मेघकुमार कि जिसका वक्षस्थल धारण किये गये हार से आनन्द प्रद हो रहा है मुख पहिरे हुए कुण्डल से प्रकाशित हो रहा है, मस्तक धारण किये हुए मुकुट से देदीप्यमान हो रहा है. और जो स्वयं अभयादिक राजतेज की शोभा से विशेष प्रभावशाली बना हुआ है-तथा जिसके ऊपर कोरेंट पुष्प की माला से युक्त छत्र नौकर के द्वारा धारण किया गया है, और जिस पर श्वेत उत्तम दो चामर ढोरे जा रहें हैं तथा जो हय-गज एवं बहुत अधिक बलिष्ठ योद्धाओ से युक्त चतुरंगिणी सेना से अनुगम्यमान मार्ग वाला है (जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेब पहारेत्थगमणाए)जहाँ गुणशिलक उद्यान था उस और मउडदित्तमिरए अब्भहियराय तेयलच्छीए दिप्पमाणे सकारंटमल्ल. दामेणं छतेगं धरिज्जमाणेण सेयवरचामराहिं उध्दुव्बमाणीहिं हयगयपवरजोहकालियाए चाउरंगिणिए सेनाए ममणुगम्ममाणमम्गे) ત્યાર બાદ ધારણ કરેલા હારથી શોભિત વક્ષ સ્થલ વાળે, પહેરેલા કુંડળેથી સુશોભિત મેં વાળે ધારણ કરેલા મુકુટથી પ્રદીપ્ત મસ્તકવાળા અભયાદિક રાજ તેજ ની ભાથી સ્વયં સવિશેષ પ્રભાવશીલ, કરે તાણેલા કેરંટ પુષ્પનીમાળા યુક્ત છત્રવાળે, ઉત્તમ સફેદ બે ચમરેથી વીજિત થતું અને ઘોડા હાથી, રથ વગેરેની બલવાન દ્ધાઓવાળી यतुलि सेना नी पाटी ही छ मेवो भेषभार ( जेणेव गुण सिलए चेहए तेणेव पहारेत्थ गमणाए ) गुYAlas Sधान त२३ ४१तैया२ थयो. For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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