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शाताधर्म कथाङ्गसूत्रे __ मूलम्-तएणं से कलायरिए मेहंकुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणय पजवसाणाओबावतरि कलाओ सुत्तओय अत्थओ य करणओ य सिहावति सिक्खावति सिहावेत्ता सिक्खा वेत्ता अम्मापिउणं उवणेति । तएणं मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो कलायरियं महुरेहि महुरेहिं बयणेहि, विउलेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण सकारेंति, सम्माणति, सक्कारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति दलइत्ता पडिविसजति ॥सू०२१॥
टीका--'तएणं' इत्यादि । ततः खलु स कलाचार्यः मेघकुमारं लेखादिकाः गणितप्रधानाः शकुनरुतपर्यवसानाः शकुनरुतपर्यन्ताः द्विसप्तति कलाः सूत्रतश्चार्थतश्च करणतश्च 'सिहावेई' सेधयति-प्रापयति, उपदिशति. 'सिक्रवावेई' शिक्षयति अभ्यासयति । 'सिंहावेता' सेधयित्वा-उपदिश्य, सिक्खावेत्ताशिक्षयित्वा प्राभ्यासं कारयित्वा, लेखादिद्वासप्ततिकलानिपुणं कृत्वा, इत्यर्थः,मातापित्रोरुपनयति, श्रेणिकस्य राज्ञो धारिणी देव्याश्च समीपे
'तएणं से कलायरिए' इत्यादि
टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (से कलायरिए) वे कलाचार्य (मेहंकु मारं) मेघकुमार को (लेहाइयाओ) लेख आदि (गणियप्पहाणाओ) गणित प्रधानकलाओं से लेकर (सउणरुयपज्जवसाणाओ) शकुनिरु- (पक्षिके शब्द) पर्यन्त (बावनरि कलाओ) ७२ कलाओं को (सुत्तओय) मूत्र से (अत्थओय) अर्थ से और (करणओय) करणरूप प्रयोग से (मिहावेति सिकरवावेंति) जब समझा चुके तथा पढा चुके (सिहावेता सिक्खावेत्ता) तब समझा चुकने के बाद और पहा चुकने के बाद (अम्नापिऊगं उवणेति) उन्होंने उम
त एणं से कलायरिए इत्यादि ।। टोकार्थ-(तएणं) त्या२ मा (से कला यरिए) ४साया (मेहंकुमार) मेघमारने (लेहाइयाओ) खे५ वगैरे (गणियप्पहाणाओ) त प्रधान ४ouथी भilने ( सउणख्यपज्जवसाणाओ) शनि २त (पक्षीमाना शह) सुधा ( बायत्तरि कलायओ) मांतर ४ा (सुत्त ओय) सूत्र द्वारा (अस्थ ओय) म १२॥ मने (करणोय) ४३९५ ३५ प्रयो1 au (सिहावेंति सिक्खाति) सभ०नवी द्वधा मने नवी दीधी (सिहावेत्ता सिक्खावेत्ता) समगव्या अने. मgan (अम्मापिउणं उवणेति) तेभो भेषभा२ने दावाने भातापिताने सांपी ।.
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