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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्म कथासूत्र 'सहस्सरसिमि' सहस्ररश्मी, सहसकिरणधारिणि 'दिणयरे' दिनकरे-दिवसकरणशीले। 'तेयसा' तेजसा-दीप्त्या 'जलंते' ज्वलति-दीप्यमाने 'मरे' सूर्ये 'उडियंमि' उत्थिते उदयानन्तरोवस्थां प्राप्ते, असौ श्रेणिकः 'सयणिज्जाओ' शयनीयतः शय्यातः 'उठेइ' उत्तिष्ठति । उत्थाय च 'जेणेव अट्ठणसाला' यत्रैव अनशाला व्यायामशाला 'तेणेव उवागच्छइ' तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य च 'अट्टणसालं अणुपविसइ' अट्टनशालां अनुपविशति, अनुप्रविश्य 'अणेग. वायामजोगवग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहिं' अनेक व्यायामयोग्यवलानव्यामर्दनमल्लयुद्धकरणैः-अनेके ये व्यायामा: शारीरिकपरिश्रमाः, तद्योग्यं तदनुकूलं यद्वलानं च-कूर्दनं व्यामर्दनं च=परम्परं घाहायङ्गमोटनं, मल्लयुद्धं च-मल्लक्रीडनं करणानि च=मुद्गरादि चालनानि, तैः सर्वैः 'सते' श्रान्तः सामान्यतः, 'परिस्सिमि) हजार किरणों का धारक (दिणयरे) ऐसा दिन को करनेवाला (मरे) सूर्य जय (तेयसा जलंते) दीप्ति से जाज्वल्यमान होता हुआ (उठियंमि) उदय के बाद की अवस्था को प्राप्त कर चुका था तब श्रेणिक राजा (सय. णिज्जाओ उठेइ) अपनी शय्या से उठे (उद्विशा) और उठकर वे (जेणेव अट्टण साला तेणेव उवागच्छद) जहां व्यायामशाला थी उस और गये। (उवागच्छित्ता अदृणसालं पविसइ) वहां जाकर वे उस व्यायामशाला में प्रविष्ट हुए। (अणुपविसित्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामद्दणमल्ल जुद्ध करणेहि) प्रविष्ट होकर वहां उन्होंने अनेक व्यायाम के योग्य, वल्गनकूदना, शरीर का मोडना मल्ल युद्ध करना और मुद्गर आदि का फेरना प्रारम्भ किया। ____जब वे इन क्रियाओं से (संते परिस्संते) श्रान्त और परिश्रान्त हो भगाना समूडने सु४२ रीते सपशेमा विसावना२ भने (सहस्सरस्सिंमि) । पिरणेने धा२९ ४२ना२ (दिणयरे) हिन४२ (मूरे) सूर्य न्यारे (तेयसा जलंते) प्रशथी गणतो (उट्रियमि) हय पछीनी अवस्थाने भेगवी यूथ्यो हता, त्यारे श्रेणुि २०n (सयणिजाओ) पातानी शय्यामाथी या (उद्वित्ता) मने हीने तेम्मा (जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ) या व्यायामा ती ते त२५ गया. (उवागच्छिता अणसालं पविसइ) त्यां ने तेमाणे ते व्यायामशामा प्रवेश यो. (अणुपविसित्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामहणमहल जादकरणेही ते व्यायामशाम ४४ने त्यां तभो ॥ व्यायाम ने योग्य पान (ઘડાને બે પગે ચલાવવું) કૂદવું, શરીરને વાળવું મલ્લયુદ્ધ કરવું અને મગદળ વગેરેને ફેરવવાનું શરું કર્યું. न्यारे तमामे माइया-माथी (संते परिस्संते) श्रान्त भने परिश्रान्त थया For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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