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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घण्टाकर्ण IN प्रतिष्ठाविधिः शान्ति दण्डकः ॥ ५८॥ Scorecarcomccccccceroopera ॐ सर्वेऽपि तपोधन-तपोधनी-श्रावक-श्राविकामवाश्चतुर्णिकायदेवाः सुपूजिताः सुप्रीता भवन्तु, शान्ति कुर्वन्तु स्वाहा. ॐ अत्रैव देश-नगर-ग्राम-गृहेषु दोष-रोग-वैर-दौमनस्य-दारिद्य-मरक-वियोग-दुःख-कळहोपशमेन शान्तिर्भवतु. दुर्मनोभूत-प्रेत-पिशाच-यक्ष-राक्षस-वैताल-झोटिंक-शाकिनी डाकिनी-तस्कराततायिनां पणाशेन शान्तिर्भवतु. भूकम्प,-परिवेष-विद्युत्पातोल्कापात-क्षेत्र-देश-निर्यात-सत्पिात-दोषशमनेन शान्तिर्भवतु. अकाल-फल-प्रसूति-वैकृत्य-पशुपक्षिवैकृत्याकालदुश्चेष्टा-प्रमुखोपल्लवोपशमनेन शान्तिर्भवतु. ग्रहगणपीरित-राशिनक्षत्रपोडोपशमनेन शान्तिर्भवतु. जांघिक-नैमित्तिकाकस्मिक-दुःशकुन-दुःस्वप्नोपशमनेन शान्तिर्भवतु. कृतक्रियमाण-पापक्षयेण शान्तिर्भवतु. दुर्जन-दुष्ट-दुर्भाषक-दुश्चिन्तक-दुराराध्य-शत्रूणां दुगपगमनेन शान्तिर्भवतु. उन्मृष्ट-रिष्ट-दुष्ट-ग्रह-गति,-दु:स्वप्न-दुनिमित्तादि; संपादित-हित-संपन्नामग्रहणं, जयति शान्ते ॥१॥ या शान्तिः शान्तिजिने, गर्भगतेऽथाजनिष्ट वा जाते; सा शान्तिरत्र भूयात् , सर्वसुखोत्पादनाहेतुः ॥ २ ॥ अत्र च गृहे सर्वसंपदागमनेन, सर्वसंतानवृद्धया, सर्वसमीहितद्धया, सर्वोपद्रवनाशेन मांगल्योत्सव REAKPCAPCCCCCA ॥ ५८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020345
Book TitleGhantakarna Pratishtha Vidhi_
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherVardhamansuri
Publication Year
Total Pages64
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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