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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दसवें गणधर-मेतार्य क्या परलोक है ? अब दसवें मेतार्य नाम वाले ब्राह्मण से प्रभु कहते है: 'विज्ञानधन एव....न प्रेत्यसंज्ञास्ति,' 'अग्नि होतं....स्वर्ग कामः' प्रादि परस्पर विरुद्ध वेद-वचनों से तुम्हें शंका हुई कि परलोक जैसी कोई वस्तु है क्या ? परलोक का न होना इसलिए लगा कि (१) वस्तु की शक्लता की भांति चैतन्य भूतपिंड का है। वस्त्र-नाश पर शुक्लता के नाश की भांति भूतपिंड के नाश पर चैतन्य स्वयं नष्ट हो जाता है; तो परलोक गमन क्या ? (२) चैतन्य भूत से भिन्न हो, तो भी काष्ठ में से प्रकटित ज्वाला की भांति विनश्वर हो सकता है, नित्य नहीं, इसीलिए भी परलोक नहीं । (३) नित्य भी वस्तु यदि सर्वव्यापी हो तो इसे कहीं जाना नहीं होता, प्रतः परलोक गमन नहीं। (४) परलोक के रूप में नरक-स्वर्ग दीखते ही नहीं हैं, तब क्या परलोक ? परन्तु परलोक है इसकी पुष्टि देखिये (१) पूर्व कथित अनुमानों से चैतन्य भिन्न स्वतन्त्र आत्मा का ही धर्म सिद्ध होता है भूतों का नहीं । जाति-स्मरणादि कारणों से सिद्ध होता है कि परलोक १०२ For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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