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गणधर
शतकम् ।
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कि " वेदाङ्ग ज्योतिष् " अत्यन्त कठिन प्राचीन व संकेतमय ग्रन्थ है, जिसे एतद्विषयक विद्वान डॉ थीबो, महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी, शं. वा. दीक्षित, लोकमान्य तिलकादि विद्वानों ने इसे समझने के लिये शत प्रयत्न किये पर सर्व विफल !|-अंत में यह जटिल समस्या महामहोपाध्याय डॉ आर, शामशास्त्रीने जैन साहित्य-सूर्यप्रज्ञप्ति, ज्योतिप्करंडक काललोकप्रकाश से सुलझा कर ग्रन्थ को सर्वथा सरल बना डाला । साथ ही साथ यह सिद्ध कर दिया कि जैनागम साहित्य मात्र धार्मिक दृष्टियों से ही महत्व का नहीं है परन्तु तात्कालिक दार्शनिक ऐतिहासिक एवं व्यवहारिक आदि अनेक अपेक्षाओं से महत्वपूर्ण है, खेद मात्र इतना ही है कि वैज्ञानिक दृष्टि से अभी यथोचित अध्ययन नहीं हुआ । सौभाग्य की बात है कि शिक्षितों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हो रहा है। प्रस्तुत ग्रन्थ:
जैन साहित्य में चरितानुवाद का स्थान आवश्यक समझा गया है, अन्य भारतीय साहित्य में इस विषय पर अत्यल्प ध्यान दिया गया है । उपरोक्त चरितानुवाद मात्र पूजनीय एवं अनुकरणीय ही नहीं प्रत्युत सूक्ष्मता से वर्णित है। इस श्रेणि में परमोपकारी पूज्य तीर्थंकर भगवान के गणधरोद्वारा रचित सूत्रों के विषयीभूत साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं एवं आचार्यों तथा जैन शासन को सुशोभित करनेवाले-प्रभावनाकारक-राजामहाराजा मंत्री आदि के जीवनचरित्र सुविस्तृत प्रभावोत्पादक शैली में गद्य पद्यात्मक रूपेण उपलब्ध होते ऐसे जीवनचरित्रों से भारतीय इतिहास पर नूतन प्रकाश पड़ता है । इतिहास की उलझने दूर करते हैं।
प्रकृत ग्रन्थ जो आपके करकमलों में विराजित है—वह भी स्तुत्यात्मक चरितानुवाद की ही श्रेणि में आता है, यद्यपि प्रस्तुत ग्रन्थ में कुछ आचार्यों को छोड़कर शेष आचार्यों का स्मरण मात्र ही किया गया है, तथापि यह ग्रन्थ अपने ढंग का सर्व प्रथम प्रयल
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