________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गणधर
सार्द्ध
शतकम्।।
Ak%COM
कन्याएं, उनके मातापिता आदि के साथ १६ वर्ष की लघु अवस्था में सुधर्मास्वामी के पार्श्व दीक्षा अंगीकार की । इस्वी पूर्व ४६२ में आप मोक्ष गये। पञ्चमकाल के आप अंतिम मोक्षगामी है। आप के निर्वाण बाद ये दश वस्तुएं विच्छेद हुई-मनःपर्यवज्ञान, परमावधिज्ञान पुलाकलब्धि, आहारक शरीर, क्षपकश्रेणि, जिनकल्पि मार्ग, परिहारविशुद्धि चरित्र, सूक्ष्मसंपराय चरित्र, यथाख्यात चरित्र, ये तीन संयम, केवलज्ञान, मोक्षगमन ।
बृहद्वृत्ति में इनका जीवन अत्यन्त विस्तृत रूप से मनोरंजनात्मक ढंग से दिया हुआ है। प्रभवस्वामी:
वे कात्यायन गोत्रीय राजा जयसेन के वहां जन्में थे। पिताने राज्य लघु बंधु को दे दिया, यह व्यवहार आप पर गजब का असर कर गया। आपने तत्काल राज्य का त्याग कर विदेश परिभ्रमणार्थ निकल गये, और ४९९ चौरों के स्वामी हुए, उपरोक्त जम्बूकुमार के वहां पर आप चोरी करने गये थे, पर अंततः आप का दिल जंबूकुमार ने चुरा लिया, और खुद के साथ दीक्षा अंगीकार करवाई । क्रमशः गणाधिपति हुए। आप ८६ वर्षका सम्पूर्ण आयु पालकर इ० स० पू० ४५१ वर्षे स्वर्ग गये, आपने उपयोग दिया कि संघ में ऐसा कौन प्रतिभासंपन्न व्यक्ति है, जिसे मैं आत्मपद पर अधिष्ठित करु ! अंततः विदित हुआ कि शय्यंभव भट्ट को ही उत्तरदायित्व पूर्ण पदप्रदान किया जाय, वे भट्टजी उस समय यज्ञ करा रहे थे, वहां पर जैन मुनियों को भेजकर प्रतिबोध दे मुनि दीक्षा अंगीकार करवाई।
SACARSACROCES
For Private and Personal Use Only