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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir II गणधर सार्द्ध शतकम् । ॥ ७॥ ROCE%ARCH विदित नहीं, पर निकटवर्ति भाइयों को चाहिये कि वे इस विषय पर खोज कर प्रकाश में लावें। जैन साहित्य में प्रतिष्ठा विषयक विधानात्मक कई ग्रन्थ पाये जाते हैं, पर प्रस्तुतः वृति में १ नवीन प्रतिष्ठाकल्प का उल्लेख आया है. जिसके रचयिता आर्य समुद्राचार्य हैं। (पृ. ५६) प्रस्तुतः पुस्तक के पृ. ५८ में जो नेत्रांजन विधान उल्लिखित है. उसे कई अनुभवी चिकित्सकोंने महत्वपूर्ण नेत्र | गुणकारक बतलाया है। वृत्ति निर्माता: श्री पद्ममंदिर श्री देवतिलक उपाध्याय के शिष्य थे, जैसा कि अंतिम उल्लेख से विदित होता है। उपाध्यायजी ने ८ वर्ष की वय में सं. १५४१ में दीक्षा अंगीकार की, अतः इनका जन्म १५३३ में हुआ होगा। जैनादि सिद्धान्तों का अध्ययन कर वि. सं. १५६२ में वे उपाध्याय पद से विभूषित हुए। इनके द्वारा रचित कोई ग्रन्थ हमारे देखने में नहीं आया । मात्र इनकी लिखित २ प्रशस्तिये बाबू पूर्णचंदजी नाहर के लेख संग्रह में [जैन लेख संग्रह भा. ३ पृ० ३५-४०] उपलब्ध होती है. जो जिन माणिक्यचंदसूरि के राज्यमें लिखी गई थीं। आपका देहावसान वि. सं. १६०३ मार्गशीर्ष शुक्ला ५ को जैसलमेर में अनशन आराधनापूर्वक हुआ, अग्मिदाह के स्थान पर स्तूप बनवाकर आपके चरणकमलों की स्थापना हुई। आपका शिष्य परिवार विद्वान था। श्री पद्ममंदिर का जन्मादि ऐतिहासिक परिचय अनुपलब्ध है "प्रवचनसारोद्धार बालावबोध ( सं. १६५१ ) और श्री देवतिलक उपाध्याय के गीत और प्रस्तुत वृत्ति ये ही आपकी कृतिये अभी तक उपलब्ध हुई है, जो आचार्य ACCRACROCOCK ॥ ७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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