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19OHAGARAM
मूल अवतरण कहीं साहित्य के, व्याकरण के, व्योरा के अनेक धर्मावलंबीयों के उल्लेख उद्धृत कर बहुमुखी प्रतिभा का परिचय कराया है, संक्षिप्तमें कहा जाय तो विषय अत्यल्पही क्यों न हो पर यदि योग्य समालोचक व विवेचक विचार करने बैठे तो कितने सुंदर व आकर्षक ढंगसे विचार कर सकता है इसका उदाहरण प्रस्तुत वृत्ति है इस महत्वपूर्ण वृत्ति के प्रकाशनार्थ मेरे पूज्य गुरुवर्य्य श्री १००८ श्री श्री श्री उपाध्याय मुनिसुखसागरजी म. प्रयत्नशील है पुरातन ८-१० हस्तलिखित प्रतियों परसे प्रेस कापी तैयार करा ली गई है। लघुवृत्ति
प्रस्तुत वृत्ति उपरोक्त वृत्ति का ही अति संक्षिप्तरूप मात्र है, इसमें रचयिता ने अपनी ओर से कुछ नूतन ज्ञातव्य पर प्रकाश नहीं डाला । वृत्ति निर्माता श्रीजिनेश्वरसूरिजी [श्रीजनपतिआर्यसूरि शिष्य ] के शिष्य हैं, और इन्होंने ज प्रबुद्ध समृद्धि गणिन्नी की अभ्यर्थना से ही प्रस्तुत संक्षिप्त रूप निर्मित किया, पंडित पद्मकीर्तिगणिने इसका संशोधन किया। स्मरण रखना चाहिये श्रीजिनपतिसूरिजी स्वयं और उनका सारा समुदाय विद्वत्ता के लिये सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध था, सूरिजी पृथ्वीराज चौहाण की सभामें शास्त्रार्थ में विजयी हुवे सूरप्रभने, स्तंभतीर्थ में वादि दिगम्बर यमदंड को पराजित किया, संक्षिप्त कहा जाय तो आपके ऐसे बहुत
१ इतिश्री युगप्रवरगम श्रीजिनदत्तसूरि विरचितस्य गणधरसार्द्धशतकस्य प्रकरणस्य पंडित सुमतिगणिकृत विवरणानुसारतः संक्षिप्त रूचिसत्वानुग्रहाय श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्येण वाचकसर्वराजगणिना प्रबुद्धसमृद्धिगणिन्ययंथनया संक्षेपेण विवरणमिदं कृतं पंडितपनकीर्तिगणिना शोधित प्रबुद्ध समृद्धि गणिन्यभ्यर्थनया ।
" सर्वराजीयवृत्ति " प्रशस्ति ।
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