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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५. साध्वीस्वरूपनिरूपण इन दो गाथाओं में मुख्य-साध्वी कैसो होनी चाहिये यही बताया गया है: जो साध्वी ज्ञान दर्शन एवं चारित्र से सम्पन्न मोक्षाभिलाषिणी है, जनता के अधिक सम्पर्क से कतराती है एकान्तवास को अधिक महत्त्व देती है किन्तु कारण उपस्थित होने पर जब कि जनता का जोवन पतन को ओर जा रहा हो. और जिनशासन की रक्षा का प्रश्न उपस्थित हो तो ऐसे समय में जो उग्ररूप भी धारण करने वाली हो अर्थात् ऐसे समय में जनता के सम्पर्क में आकर परम साहस से कार्य करने वाली हो । तथा स्वाध्याय और ध्यान में रक्त रहने वाली हो और नवदीक्षिताओं तथा अन्य साध्वियों की भली प्रकार रक्षा करने वाली हो । अपनी शिष्याए तथा अन्य के पास से अध्ययन एवं वैयावञ्च आदि के लिये आई हुई दूसरी शिष्याएं, इन में जो समभाव वर्ताती हो, उन सब को प्रेरणा करने में शिक्षा देने में किसी प्रकार का आलस्य प्रमाद एवं पक्षपात नहीं करती हो । इस प्रकार जो अपने पूर्व प्रशस्त पुरुषों का अनुसरण करती है, वह आर्यका महत्तरिका पद के योग्य होती है। टिप्पण-इसी प्रकार, ये उपरोक्त गुण जिस साधु में हों, वह साधुओं में मुखिया वनने के योग्य है।। जत्युत्तरपडिउत्तर, वडिया अज्जा उ साहुणो सद्धिम् । पलवंति सुरुहावी, गोश्रम ! किं तेण गच्छेण ? ॥१२६।। योत्रत्तरप्रत्युत्तरं, वृद्धा आर्या तु साधना साईम् । प्रलपन्ति सुरुष्टाऽपि, गौतम ! किं तेन गच्छेन ? । १२६।। For Private And Personal Use Only
SR No.020333
Book TitleGacchayar Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokmuni
PublisherRamjidas Kishorchand Jain
Publication Year1951
Total Pages64
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size3 MB
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