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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साध्वीस्वरूपनिरूपण धोयंति कठिाश्री, पोअंति तह य दिति पोत्ताणि । गिहिकअचिंतगाओ, न हु अञ्जा गोश्रमा ! ताओ ।।१२४|| ___ जो आर्यकाए विना कोरण अपने कण्ठ आदि अंगो को धोती हैं गृहस्थो के लिये मोतियों की माला परोती हैं और उन के बालकों आदि को वस्त्र देती हैं इस प्रकार जो गृहस्थसम्बन्धी चिन्ताओं तथा उन के कार्यों में अपनी सम्मति मिलाती हैं, हे गौतम ! वास्तव में वे आर्यकार नहीं है ॥ खरघोडाइहाणे, वयंति ते वावि नत्थ बच्चति । वेसत्थीसंसग्गी, उस्सयाओ ममीवमि ।।१२५॥ ___ जहां गोड़े गधे आदि पशु बान्धे जाते हैं अथवा जहां वे उठते बैठते हैं और आपस में कामक्रीड़ाए करते हैं, उन स्थानों पर जो आर्यकाएं वार वार जातो हैं अथवा जहां आयकाएं ठहरी हुए हैं उस स्थान पर वे घोड़े गधे आते जाते हैं, तो जो आर्यकाएं प्रसन्न होती हैं. इस के अतिरिक्त जहां वेश्या का सम्पर्क होता हो अथवा जिन अर्शकाओं के उपाश्रय के पास वेश्या रहती हो तो उन को आर्यका न समझना चाहिये । धोवन्ति कण्ठिकाः, प्रोतयन्ति तथा च ददति वस्त्राणि । गहकार्यचिन्तिकाः, न हु भार्याः गौतम , ताः ।। १२४ ॥ खरघोटकादिस्थाने. व्रजन्ति ते वाऽपि तत्र व्रजन्ति । वेश्यास्त्रीसंसर्गा, उपाश्रयात् समीपे ॥ १२५ ।। "वच्चंति" 'व्रज-नृत-मदां च.॥८४२२५ ।। इति सूत्रेण अजधातोन्त्यस्य द्विरुक्तश्चकारः ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020333
Book TitleGacchayar Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokmuni
PublisherRamjidas Kishorchand Jain
Publication Year1951
Total Pages64
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size3 MB
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