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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुस्वरूपनिरूपण पुष्फाणं बीयाणं, तयमाईणं च विविहदवाणं । संघट्टणपरिश्रावण, जत्थ न कुजा तयं गच्छम् ।।८१॥ __पुष्प, बीज तथा वृक्ष आदि के मूल, पत्र, अंकुर, फल और छाल आदि का संघट्टा तथा परिताप जिस गच्छ के मुनि न करते हों वह वास्तविक गच्छ है ।। हासं खेडडा कंदप्प, नाहियवायं न कीरए जत्थ । धावणडेवणलंघण, ममकारावण्ण उच्चरणम || ८२ ॥ जिस गच्छ में हांसी मखोल, बालक्रीड़ा कामकथादिक कुचेष्टा न की जाती हों, तथा नास्तिकवाद के वचन न बोले जाते हों और विना प्रयोजन इधर उधर शोवतया गमानागमन करना, वेग से किसी खाई आदि को पार करना एवं उछल कर किसी चीज़ को पार करना, वस्त्र पात्र आदि पर ममत्व भाव रखना तथा पूजनीय गुरुजनों का अवर्णवाद बोलना ये सब जिस गच्छ में न हों वही वस्तुतः गच्छ है । जत्थित्थीकरफरिसं, अंतरियं कारणे वि उप्पन्ने । दिडिविसदित्तम्गी, विसं व वजिज्जए गच्छे ।।८३॥ पुष्पानां बीजानां, त्वगादीनाञ्च विविधद्रव्याणाम् । सङ्घट्टनपरितापनं, यत्र न कुर्यात् सको गच्छः ।। ८१ ॥ हास्य क्रीडा कन्दर्पो, नास्तिकवादो न क्रियते यत्र । धावनं डेपनलङ्घनं, ममकारोऽवर्णोच्चारणम् ॥२॥ यत्र स्त्रीकरस्पर्श, अन्तरिते कारणेऽपि उत्पन्ने । दृष्टिविषदिप्ताग्नि-विषमिव वर्जयेत् (स) गच्छः ॥२३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020333
Book TitleGacchayar Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokmuni
PublisherRamjidas Kishorchand Jain
Publication Year1951
Total Pages64
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size3 MB
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