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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० गच्छायार पइएयं गच्छ में रहते हुए अनेकों के संसर्ग में श्राना पड़ता है अतः किन के सहवास में रहना चाहिये इस का वर्णन करते हुए सहवास का महत्त्व भी बताने हैं - निविग्रहमयठाणे, सुसिकसाए जिदिए । विहरिज्ज ते सद्धिं तु छउमत्थेवि केवली ॥ ४२ ॥ केवलज्ञानयुक्त केवली भी ऐसे झाथों के साथ रहे, जिन्हों ने आठों प्रकार के मद अपनी आत्मा से पृथक कर दिये हैं कषायों को बहुत पतला कर दिया है और जो इन्द्रियों तथा मन को अपने वश में किये हुए हैं ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir टिप्पण - जब केवली के लिये भी शुद्ध सहवास में रहना कहा है तो स्थ को जिसका आत्मा के साथ मोहनीय कर्म लगा हुआ है उसे तो अवश्य अतिशुद्ध सहवास में ही रहना चाहये || संग किस का छोड़ देना चाहिये अब इस विषय का वर्णन करते हैं जे हिपरमत्थे, गोत्रमा ! संजया भवे । तुम्हा तेवि विवज्जिज्जा, दोग्गड़पंथदायगे || ४३ ॥ जो साधु तो बने हुए हैं परन्तु परमार्थ से अनभिज्ञ हैं उन का सहवास दुर्गति पथ में डालने वाला है इस लिये हे गौतम! उन निष्ठापिताष्टमदस्थानः शोषितकपायो जितेन्द्रियः । वित् तेन साद्ध तु छद्मस्थेनापि केवली ॥ ४२ ॥ येऽनधीतपरमार्था, गौतम ! संयताः भवन्ति । तस्मात्तानपि विवर्जयेत्, दुर्गतिपथदायकान || ४३ || · For Private And Personal Use Only
SR No.020333
Book TitleGacchayar Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokmuni
PublisherRamjidas Kishorchand Jain
Publication Year1951
Total Pages64
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gacchachar
File Size3 MB
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