________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्यस्वरूपनिरूपण तो तुझे कथन करना ही चाहिये क्योंकि कोई एक व्यक्ति अावरण की दृष्टि से शिथिलावारी होते हुए भी यदि वह भगवान् के विशुद्ध मार्ग का यथार्थरूपेण बलपूर्वक वर्णन करता है तो वह अपने कर्मो को क्षय रहा है उस की आत्मा विशुद्ध हो रही है और वह आगे के लिये सुलभबोधी बन जाता है। सम्मग्गमग्गसंपद्विाण, माहूण कुणइ वच्छल्लं । सिहभेसज्जेहि य, सयमन्नेणं तु कारेइ ॥३५ ।।
जो साधक आत्माएं प्रशस्तमार्गास्ट हैं उनसे अधिक प्रेम करना चाहिये तथा उन की औषध आदि से स्वयं सेवा करनी तथा अन्य से करवानी चाहिये। भूए अत्थि भविस्सति, केइ तेलक्कनमिअकमजुअला । जेमि परहिअकरणेक-बद्धलक्खाण वालिही कालो ॥३६॥ ऐसे महापुरुष पीछे हुए हैं, अब हैं और आगे होते रहेंगे जिन की
आयु का एक क क्षण धूसरों का भला करने में व्यतीत हुमा और जिन के चरण कमलों में तीनों लोकों के प्राणी नमस्कार करते
सन्मार्गमार्गसम्प्रस्थितानां, साधूनां करोति वात्सल्यम् ।
औषधभैषजैश्च, स्वयं अन्येन तु कारयति ॥ ३५ ॥ भूताः सन्ति भविष्यन्ति, केचित् त्रैलोक्यनतक्रमयुगलाः । येषां परहितकरणैक-बद्धलक्षाणां जगाम कालः ॥ ३६ ।।
"वोलिही' 'गमेरई०' ८४।१६२।। इति सुत्रेण गमधातोबोलादेशः ।
For Private And Personal Use Only