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जैनग्रन्थरत्नाकरे. यस्मिन्ससारकान्तारे यमभोगीन्द्रसेविते । पुराणपुरुषाः पूर्व मनन्ताः प्रलयं गताः ॥ ६॥
भाषार्थ-कालम्वरूप सर्पकरि सेवित यह संसार रूपबन है या विषै पहिलें अनन्ता पुराण पुरुष कहिये सलाकापुरुष प्रलयकू प्राप्त भये तिनिकू विचारतें शोक करना वृथा है॥ फेरि कालका प्रबलपणा दिखावै हैं,प्रतीकारशतेनापि त्रिदशैर्न निवार्यते। यत्रायमन्तकः पापी नृकीटैस्तत्र का कथा ॥७॥
भाषार्थ-यहकाल है सो पापस्वरूप है सो जहां देवनिकरि सैंकड़ां इलाजनिकरि भी नाहीं निवास्या जाय है तहां मनुष्य कीड़ेकी कहा कथा है ? काल दुर्निवार है ॥
फेरि कहै हैं,गर्भादारभ्य नीयन्ते प्रतिक्षणमखण्डितैः । प्रयाणैः प्राणिनो मूढ कर्मणा यममन्दिरं ॥ ८॥
भाषार्थ-हे मूह प्राणी ! यह आयुनामा कर्म है ताकार सर्व प्राणी गर्भतें लगाय अर क्षणक्षणप्रति अखंडित निरंतर प्रवाहरूप प्रयाणनिकरि यममन्दिरकू प्राप्त कीजिये हैं तिनकुं देखि ॥
फेरि कहै हैं,यदि दृष्टः श्रुतो वास्ति यमाज्ञावश्चको बली। तमाराध्य भज स्वास्थ्यं नैव चेकिं वृथा श्रमः॥९॥
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