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वर्षका दुर्मिक्षः पड़ेगा ॥ ५ पूर्वश्रुतः वगैरहः विच्छेद होजायगा भिक्षुकः चैत्यद्रव्यके धारनेवाले शिथिलाचारी बहुतसे होवेंगे । और जो साधुधर्मपालनेवाले दक्षिण पश्चिम दिशामें रहेंगें ॥ ५ छटेखप्नमें विमानगिराहुआ देखा उससे जंघाचारण, विद्याचारणसाधु भरतऐरवत क्षेत्रमें नहींआवेगा॥ ६ सातवें खप्नमें कचरेमें कमलउगाहुआ देखा उससे धर्मचारवर्णो में वैश्यवर्णमें बहुतकरके रहेगा सूत्रः रुचिः जीव अल्पहोवेगें ॥ ७ आठवें खप्नमें खजवा (आग्गिया) उद्योतकरताहुआ देखा उससे जिनधर्मका उदय, पूजा, सत्कारविशेष नहीं होगा और कुदर्शनियोंकी पूजाहोगी ॥९ नवमे खप्नमें सूखा सरोवरदेखा उससे जहांजहां जिनकल्याणकहै वहांवहां धर्मकी हानिहोगी ॥x प्रायः जैनियोंका कुल वहां नहींहोगा ॥९ दशवें खप्नमें सोनेके थालमें कुत्ता खीरखाता हुआ देखा उससे उत्तम कुलकी लक्ष्मी मध्यम और नीचकुलमें जावेगी। नीच जातिवाले धनवान होवेंगे॥ उत्तम नीचोकी सेवाकरेंगें। १० ग्यारहवें खप्नमें हाथीपर बैठाहुआ वानरादेखा उससे दुर्जन सुखीहोवेंगे राज्यकरेंगे इक्ष्वाकुवंशीय सूर्य चंद्र वंशीय राजाओंकी हानि होगी ॥११ बारहवें स्वप्नमें समुद्र मर्यादा छोडताहुआ देखा ॥ उससे राजा अन्याय करेंगे । क्षत्रिय वगैरहः मर्यादामें नहींरहेंगे॥१२ तेरहवें स्वप्नमेंबड़ेरथमें छोटेवछड़ें जोते हुए देखे उससे वृद्ध अवस्थामें भी चारित्रनहींलेंगे ॥ वत्स तुल्य छोटी उमरवाले साधु होवेगें। वैराग्यभावसे चारित्रग्रहण करेंगे वहभी प्रमादीहोंगे। १३ चौदहवें खप्नमें बहुतकीमतकारतन तेजहीनदेखा उससे भरत,ऐवतक्षेत्र में साधु असमाधीकरनेवाले कलह करनेवाले
बा.व्या. ७
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