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उपवास का फल पावे, केसर चंदन अंबर कस्तूरी वगेरह का विलेपन करे तो हजार उपवास का फल पावे। विकखरमान सुगंध पुष्पोंकी मालाचढाने से लाखउपवास जितनी निर्जरा करे-गीत वादित्रादिभावपूजा करने से अनंत उपवास जितनाफलपावे ॥ भावप्रधाननिर्देशहे आवश्यकनियुक्तिमें द्रव्यपूजाकाफलसंसार परित्त कहाहे है
१ मन वचन कायाकी शुधीकरके पर्युषणा पर्व में स्नात्र पूजा वगेरह करना उस अवसरमें भगवान की छमस्त १ टू केवली २ सिद्धखरूप ३ ये तीन (३) अवस्था विचारनी कहाहे
हवणचणेहिं छउमत्थ-वत्थपडिहारेगेहिं केवलीय। पलियं वुस्सग्गोहिय-जिणस्स भाविज्जसिद्धत्तं ॥१॥ PI अर्थ-लात्रविलेपनादि पूजाकरतेवखत छप्रस्थअवस्था भावनकरनी जैसे मेरुसिखरपरदेवेंद्रतीर्थकरका मात्रकरहे
वो विचारना चैत्यवंदनकरते वखत छत्रचामरादिप्रातीहार्ययुक्त समवसरणमें रहे हुवे तीर्थकरकी केवलीअवस्था विचारनी काउसग्गकरती वखत सिद्धअवस्था विचारनी १॥ द्रव्यपूजाकी सामग्री यदि नहोवे तो भावपूजातो अवश्यकरनी प्रभातमें श्रीजिनमंदिरजाके शुद्धभावसे भगवानका दर्शन करना भगवानकी मुद्रा देखके भगवानका गुणस्मरणकरना भगवानके दर्शन वगेरहका फल यह हे
दर्शनात् दुरितध्वंसी-वंदनाद्वांछितप्रदः। पूजनात्पूरकः श्रीणां-जिनः साक्षात्सुरद्रुमः॥१॥
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करना भगवा श्रीजिनमंदिरावस्था विचारतीहार्ययुक्त समय जैसे मेरुसिखापरल्ल भावि
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