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चातुमासिक
॥ ९ ॥
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अर्थ - श्रावक उपयोग सहित हुआ था उभय काल प्रभात और संध्याकालमें तीर्थकर महाराजरूप वैद्यने कहा | विधि करके सम्यक् प्रकारसे औषधके जैसा आवश्यक ( प्रतिक्रमण ) करे वह कर्म रोगरहित होता है प्रतिक्रमण नियम में साजनसिंहका दृष्टान्त है । वह इस प्रकार से है "साजनसिंह सेठ दोनों वक्त प्रतिक्रमण करता था। प्रतिक्रमण नहीं करूं तो आहार नहि करूं ऐसा नियमवाला था, एक दिन पिरोजपातसाहने कोइक अपराध होनेसे कारागृह में डाला तो वहां रहा हुआभी सेठ पहरेदारों को ५० सोनइया हमेसा देके निरन्तर प्रतिक्रमण कीया अन्यदा दो रत्न की परीक्षा के विचारमें पातसाहने साजनसिंहको बुलाया तब साजनसिंहने कहा महाराज ? जगतमें दो रत्न तो ये हैं और तीसरा रत्न आप हैं ऐसा सुनके पातसाह प्रसन्न होके सेटका सत्कार करके छोड़ा तब उरेहुए आरक्षकोने सोनइये सेटको पीछे दिये तब सेठने सोनइया उन पहरेदारों को ही वापिस देके बोल अहो यह कितना धन हैं जिस कारणसे तुम्हारे सहायसे मैंने अमूल्य प्रतिक्रमण किया है" इतने कहने कर प्रतिक्रमण नियमपर दृष्टान्त कहा ॥ १ ॥
अव पोषध पदका व्याख्यान करते हैं धर्मकी पुष्टि धारण करे सो पोषध कहा जावे वह पोषध चार प्रकारका है ( १ ) आहारं पौषध ( २ ) सरीर सत्कार पौषध ( ३ ) गृह व्यापार पोषध ( ४ ) अब्रह्म पौषध याने
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व्याख्यानम्.
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