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T॥१॥ वाद लुब्धकमरके सातमी नरक गया वहांसे निकलकर मच्छहोकर ग्वालिया भया परन्तु दरिद्रिभया किसी वानिएने नमस्कार सिखाया वाद दावानलमें जलके नमस्कारके प्रभावसे तैं राजपुत्रभया । दुर्गन्ध ऐसा टू नाम यह सुनके जातिःस्मरणपाके पूर्वभव यादकरके प्रभुःसे पूछा हे भगवन् मैं कैसे इसपापसे छद्रं ॥ और कैसे | सुगन्ध होवु इसका उपाय कृपा करके फरमायें तब श्रीतीर्थकर बोले तें सातवर्ष और सात महीना रोहिणीका तपकर तप पूर्ण होनेसे उद्यापन करना यह सुनके दुर्गन्ध कुमरने रोहिणीका तपकिया उसके प्रभावसे कुमर सुगंध भया यह कथा सुनके दुर्गन्धा रोहिणीका तप विधिपूर्वककरके सुगन्धा भई वहांसे मरके देवलोकमे है
देवी भई देवलोकसे च्यवके चंपानगरीमें श्रीवासुपूज्यखामीका मघवा नामका पुत्र उसकी रोहिणी नामकी पुत्री है भई इस वक्तमें यह तुम्हारी रानी है पूर्वतपके प्रभावसे यह रोहिणी जन्म पर्यंत दुःख नहीं जानेगी। हे अशोक
राजेन्द्र इसपर तेरे अधिक स्नेहहै इसका कारण सुन सिंहसेनराजा सुगन्ध नाम अपने पुत्रको राज देके गुरूके पास दीक्षा लिया सुगन्ध राजाभी जैनधर्मको आराधके समाधिःसे मरणपाके देवभव पाया वहांसें च्यवके इसी जम्बूदीपके पूर्वमहाविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती विजयमें पुण्डरीकनी नगरीमें विमलकीर्तिः राजा सुभद्रा रानीकी कुक्षि में चौदह महाखानसूचित देवका जीव अवतरा क्रमसे शुभदिनमें शुभलक्षण युक्तः रानीने पुत्र जन्मा राजाने ४ अर्ककीर्तिः नाम किया क्रमसे चक्रवर्ती भया राज्यभोगवके जितशत्रु,मुनिःके पास दीक्षा लेके दुष्करतप
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