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॥ ७९ ॥
दीवा०६ मेरी सेवाकरो मैं तुझे देशग्राम दूंगा तब नमि, विनमि भरतका वचन नहीं मानके राज्यके वास्ते खामीके पासमें चैत्रीपीव्याख्या० आए विहार करते हुए भगवान्के आगे मार्गमें कांटापत्थर वगैरहः दूरकरें भगवान् जब काउसग्गमें खड़ेरहें ६
णिमाका तब डांसमच्छर वगैरहः उड़ावें प्रभातमें वंदना करके कहें खामिन् राज्य देनेवाले होवो ऐसे कहतेहुए निरंतर रहें ले
व्याख्यान, एकदा भगवान्को वन्दनाकरनेके वास्ते धरणेन्द्र आया उन्होंकी वैसी भक्तिः देख प्रसन्न हुआ ॥ भगवान्का रूप द करके उन्होंको अड़तालीस हजार पठितसिद्धविद्या दिया सोलह विद्या देवीका आराधन दिया वैताब्य पवेतपर?
दक्षिणश्रेणीमें रथनूपुर चक्रवाल प्रमुख पचास नगर और उत्तर श्रेणीमें गगनवल्लभ प्रमुख साठ नगर वसाके दिया
वहां विद्याके बलसे लोगोंको बुलाके जितने नगर उतनेही देश स्थापके नमि विनमि अलगअलग राज्य पालते भए । टू रहे बहुतकाल राजसुखभोगवके अंतमें सर्वसंगका त्याग करके दीक्षालेके श्रीभरतचक्रवर्तीके संघके साथ श्रीसिद्धाचल तीर्थपर आके श्रीयुगादिदेवको नमस्कार करके फाल्गुनसुदीदशमीके दिन उसी तीर्थपर मोक्षगए इतने कहनेकर नमि, विनमिका सम्बन्ध कहा ॥ अथ श्रीऋषभदेवस्वामीके प्रथमगणधर श्रीपुण्डरीकनामके यहांही
x ॥ ७९ ॥ ६ मोक्ष गए हैं उन्होंका सम्बन्ध कहतेहैं। श्रीऋषभदेवखामीका पुत्र भरतचक्रवर्ती उन्होंका पुत्र पुंडरीक श्रीऋषभत देवः खामीके पासमें धर्म सुनके प्रतिवोधपाके दीक्षा लेके पहले गणधर भए पांच करोड़मुनियोंसें परवरेहुए
ग्रामानुग्राम विचरते भए ॥ गणधर सोरठ देशमें आए श्रीपुंडरीक गणधरका आगमन सुनके अनेक राजा मंड
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