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दीवा० व्याख्या०
॥ ७३ ॥
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अपने आश्रम गए सामन्तसिंह भी तापसोंको क्रोधी देखके डरा वहांसे भागके चलागया पापकर्मके योगसे सामने सिंह मिला शीघ्र सिंहने मारा वह मरकर नरक गया नरकसे निकलकर असंख्यात तिर्यञ्च नरकादिकके भवकरके अकामनिर्जरासे वहुतकर्मोंको खपाके महाविदेहक्षेत्र में कुसमपुरनगर में विशालकीर्तिराजाके घरमें | शिवानामदासीका पुत्रहुआ उसने वज्रनाम दिया क्रमसे यौवन पाया राजाकी सेवा करता भया परन्तु पूर्वकृत कर्मके उदयसे उसके शरीर में गलितकुष्ट रोग उत्पन्न हुआ || हाथ पग गलके पड़ा पांगुला होगया ॥ बाद मरण | समय में शिवदासीने नौकार सुनाया समाधिः से मरके व्यन्तर देव भया वहांसे च्यवके जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र सोहाग - पुरनगर में शूरदास सेठ के घर में वसंततिलकाभार्याके स्वयंप्रभनामका पुत्र भया वह गुणवान् विवेकवान् परन्तु पगों में व्रणरोग युक्तही उत्पन्न हुआ इसलिये चलनेको असमर्थथा क्रमसे आठवर्षका भया एकपुत्र होनेसे माता पिता उसके दुःखसे दुःखी भया उससमय में श्री शत्रुंजयतीर्थ की यात्रा करनेको संग गया तब वह सुनके सेठभी पुत्रसहितसंघके साथ चला क्रमसेसिद्धक्षेत्र में संघ पहुंचा विधिसे पर्वतपर चढकर श्रीऋषभदेवखामीकी यात्रा किया शूरदाससेठ भी स्त्रीसहित पुत्र लेकर तीर्थके ऊपर जाकर सूर्यकुंडके जलसे पुत्रको स्नानकराया परंतु वह जल देवता अधिष्ठित है स्वयंप्रभके वह कर्म हालमें नहीं क्षय हुआ है इसकारण से सूर्यकुण्डका जल पगों को नहीं स्पर्शे वह देख के | लोगों को आश्चर्य भया तब संघके लोगोंने मुनीश्वर से पूछा हे खामिन् यहाँ क्या कारण है मुनि बोले इसने बहुत भवसे
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मेरुत्रयोदशीका
व्याख्यान.
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