________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit
GOOGGCSCALECSCRECASCAL
दहा-बाप कहे मेरे पूत सपूता बेन कहे मेरा भइया ॥
* घरजोरूभी लेत बलैयां सोइ बडो जांकी गांठ रुपैया ॥१॥ बाद सेठ निर्धन होनेसे दुःखसे काल गमाता हुआ॥ कितने दिनोंके वाद उस नगरके उद्यानमें श्रीदेवेन्द्रसरि समवसरे वनपालकने राजाको वधाई दिया राजा वन पालकको बहुत द्रव्य देके खुशीकिया ॥ वाद राजा और है ४ानगरके लोगसुरेन्द्रसेठ वगैरह, बांदनेके वास्ते गए ॥ आचार्य के पास आके वंदना करके यथायोग्य स्थानबैठे॥2 आचार्यने देशना प्रारंभ करी ॥ अहो भन्यो संसारमें धर्म पदार्थही सारहै कल्याणकारकहै ॥ कहाहै ॥
धर्मतः सकलमङ्गलावलिधर्मतः सकलसौख्यसंपदः ॥
धर्मतः स्फुरति निर्मलं यशो, धर्म एव तदहो विधीयताम् ॥१॥ विवेकः परमो धर्मो, विवेकः परमं तपः॥ विवेकः परमं ज्ञानं, विवेको मुक्तिसाधनम् ॥२॥ भक्ष्याऽभक्ष्यविचारः स्याद् गम्यागम्यविभेदकृत्॥ मार्गाऽमार्गपरिज्ञानं गुणाऽगुणविचारणा॥३॥ निद्राऽऽहारो रतं भीतिः, पशूनां च नृणांसमम्।विवेकाऽन्तर मत्रास्ति, तं विना पशवःस्मृताः॥४॥ एक उत्पद्यते जन्तुर्यात्यकश्च भवान्तरम् । एको दुःखी सुखी चैकस्तथैकः सिद्धिसौख्यभाकू॥५॥
LOCACAUSERECTORICA
चा. व्या. १२
%
For Private and Personal Use Only