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दीवा० व्याख्या
॥५८॥
@जयकी यात्रा करनेसे बहुतलाभ होवेहै । सौसागरप्रमाणे नरकयोग्य कर्मका नाश होवेहै ॥ ब्राह्मण स्त्री, मौन एकाबालक, ऋषिः इन्होंकी हत्याके पापसे छूटेहै । इसलिये कार्तिकी उपवास करके यात्रा करना परम श्रेयहै ॥
दशीका कदाचित् यात्रानहीं करसकेतो बड़े आडंबरसे शत्रुजयकेसामने श्रीयुगादि देवकीप्रतिमा रथमें स्थापके रथयात्राकरे॥ व्याख्यान, मात्रपूजा महोत्सवादि करनेकर चैत्यवंदन खमासमण वगैरहः विधिः करनेसे बहुतकर्मकी निर्जरा होवेहै ॥ बहुत पुण्यवृद्धिः होवेहै । इस कारणसे कार्तिक पूर्णिमाके दिन पूजा, प्रभावना, पौषधादि करनेकर दिन सफल करना॥5 पर्व आराधन करनेसे प्राणी कल्याण पावेहै । इतने कहनेकर कार्तिकपूर्णमासीका व्याख्यान समाप्त हुआ।
अब मौन एकादशीका व्याख्यान लिखते हैं। अरस्य प्रव्रज्या नमिजिनपतेर्ज्ञानमतुलं, तथा मल्लेर्जन्मव्रतमपमलं केवलमलम् ।
वलौकादश्यां सहसि लसदुद्दाम महसि, क्षितौ कल्याणानां क्षिपतु विपदः पञ्चकमदः ॥१॥ अर्थः-अठारहवां अरनाथतीर्थकर ने दीक्षालिया ॥ इक्कीसवां नमिनाथखामीको केवलज्ञानउत्पन्न हुआ अनुपम और उगणीसमा मलिनाथखामीका जन्म मलरहितदीक्षा निर्मल केवलज्ञान उत्पन्न भया कैसा केवलज्ञान
॥५०॥ सर्वद्रव्यगुणपर्याय जानने में समर्थ ॥ तेजवान मगसरसदी ग्यारसको पांच कल्याणक हुआ ॥ सो विपदाको दूरकरो
॥ कल्याण पर्णिमा रिहः विधि,
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