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पातेहै ॥२॥ ऐसा सेठका वचनसुनके सुंदरी बोली॥ आप क्यों नहीं पढ़ातेहैं ॥ पुत्र पिताके आधीन होते है ॥ पुत्री माताके अनुगामिनी होवेहै ॥ ऐसा कहके सेठको चुपका करदिया सेठ मौनधारके रहा ॥ बाद पांचो लड़के बडे हुए ॥ यौवनअवस्था पाई॥ परन्तु कन्या कोई देवे नहीं जिसके पास कन्यामांगे वह ऐसा सुनावे मूर्ख निर्धन है दूरस्थ ॥ इत्यादि ॥ अहो सेठ तुमने क्यानहीं सुनाहै मूर्ख १ निर्धनः २ दूररहा हुआ ३ कन्यासे तीनगुणा अधिक वर्षवाला ४ शूरवीर ५ विरक्तः ६ इन्होंको कन्या देनानहीं ॥ ऐसा सुनके सेठ स्त्रीसे बोला हे प्रिये तैने पुत्रों को मूर्खही रख दिये इससे कोई कन्या नहींदेताहै ॥ तब सुंदरी बोली इसमें मेरा दोपनहीं तुह्माराही दोष है । सेठ-४ बोले अरे पापिनी सन्मुख बोलतीहै ॥ स्त्रीबोली तेरा पिता पापी जिसनें तेरको सिखाया नहीं कहाहै ॥
आः! किं सुंदरि ! सुन्दरं न कुरुषे ! किं नो करोषि स्वयं ! आः! पापे! प्रतिजल्पसि प्रतिपदं! पापस्त्वदीयः पिता । धिक् त्वां क्रोधमुखीमलीकमुखरां त्वत्तोऽपि कः कोपनो ॥
दम्पत्योरिति नित्यदन्तकलहक्लेशातयोः किं सुखम् ? ॥१॥ अर्थ:-हे सुंदरि खेदकी बातहै यह तें अच्छा नहीं करतीहै ॥ तव सुंदरी बोली तें आप क्यों नहीं करताहै। सेठ
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