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ज्ञानपंचमी व्याख्यान.
भव्य पंचमीके आराधनसे ज्ञान पावेहे ॥ निश्चय इसकारणसे प्रमादको छोडकर विधिःसे पंचमीका आराधन करना ॥ दीवा०
गुणमंजरी और वरदत्तकुंवरने जैसेभावसे पंचमीका आराधन किया ॥ सो यहां उन्होंका दृष्टान्त कहते हैं । व्याख्या
| श्रीजम्बूद्वीपके दक्षिणार्धभरतक्षेत्रमें पद्मपुरनामका नगरथा। उसमें प्रसिद्ध कीर्तिः जिसकी ऐसा अजितसेननामका ॥५०॥1
राजा होता भया ॥ यशोमतिनामकी पटरानी उन्होंके रूप लावण्यसे शोभित वरदत्तनामका पुत्र हुआ ॥ कुंवरजब
आठवर्षका भया तब राजाने पंडितकेपास पढानेकेलियेरक्खा ॥ परन्तु कुंवरको अक्षरमात्रभी नहीं आवे ॥ अध्यादूपकका उद्यम निष्फलहुआ ॥जब अक्षर मात्रभी नहींआवे तो शास्त्रकी कथा तो दूर रही ॥ क्रमसे यौवनपाया तब
पूर्वकर्मके उदयसे कोढ़ भया ॥ सुख नहीं पावे ॥ राजारानीवगैरह दुःखीहुए ॥ बहुत उपाव किया परन्तु कोईगुण नहींहुआ ॥ और उसीनगरमें सातकरोड सोनइयोंका स्वामी जिनधर्ममेरक्तः प्रसिद्धः सिंहदास नामका सेठरहे ॥ उसके घरमें कपूरके जैसा निर्मल सुगंधितगुण जिसका ऐसी कर्पूरतिलका नामकी स्त्री उन्होंके गुणमंजरीनामकी पुत्री जन्मसेही रोगसे पीडित और वचनसे मूकायाने मूंगी बहुत औषध किया परन्तु रोगकी शांति भई नहीं ॥ यौवनअवस्थामें काई पर्णे नहीं ॥ सोलहवर्षकी भई ॥ उसको देखके मातापिता वगैरहः सब वजनदुःखी भये ॥ उस नगरके उद्यानमें एकदा चारज्ञानके धारणेवाले विजयसेनसूरि आचार्यआये ॥ तब सब नगरके लोग कुंवरसहितराजा और कुटुम्बसहित सिंहदाससेठ वन्दना करनेको आए ॥ राजा वगैरहः आचार्यको वन्दना नमस्कारकरके यथायोग्यस्थान बैठे आचार्यने धर्मदेशना प्रारंभकरी ॥
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