________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 172 धातुसंग्रह. वै, (ओं) प. 1. शोषणे. 1441, सोसयुं, 24aa. वायति द्रव्याणि द्रव्यने - छ. वायुः, 1 वानः, 2 वाना, 3 वानम् (j). व्यच, (अ) प. 6. व्याजीकरणे. छतर, धूत, 458 42. विचति धूर्तः साधु म् धत्तो साधुने छेत. व्यथ (अ. पू. म.) आ. १.भयसंचलनयोः दुःखेच. 1 मी, 72, 2 सं५२j, 3 40sj, rsj. व्यथते पापात् साधुः सा५ / 5 / 722. णो-व्यथयति. व्यथा (6:5), व्यथनः (6:542), विथुरः (राक्षस), व्यथकः (भभाष४). ध्यध, (अ) प. 4. ताडने. तusj, ताउन 42y, वियपुं. विध्यति च्याधोमृगम् याच भृगने विधछे. व्याधः (पा२५), विधः (२॥खोप४२१), विधुः (मंद्र), वेधः = वेह (छिद्र), श्वावित् (5 + 2 // 431). व्यय, (अ) उ. 1. गती. vj. व्ययति-ते आय. व्ययः (पर्य). व्यय उ. 10. वित्तसमुत्संगै. वित्तसमुत्सर्गस्त्यागः, , पारपुं. व्ययति-ते धनं नरः १२धन मर्यछे. व्ययः (मर्थ). व्युष, (अ) प. 4. दाहे विभागे च. 1 पाण' 2 मिन 42, dr. व्युण्यति माणे छ इ०. व्ये, (ब) उ. 1. संवरणे. संवरणमाच्छादनम्. छाg, मो . व्ययति-ते छायचे. 1 व्यानम्, 2 संव्यानम्, 3 उपसंव्यानम् (पढ२), व्येयम् (आय). ब्रज, (अ) प. 1. गतो. . व्रजति जय. व्रजः (गो३५), परिव्राजकः (सं न्यासी), 1 बज्या, 2 प्रव्रज्या, 3 परिवज्या (संन्यासीय). व्रण, (अ) प. 1. शब्दार्थः. श६ ४२वो. व्रणति 2058 422. व्रणः (2004). व्रण, उ. 10. गात्रविचूर्णने. शरीरे १\-नेणपुं. व्रणयति नेणे. व्रणः (या), व्रश्च्, (ओ, अ) प. 6. छेदने. छे. वृश्चति मूलम् भूबने छछ- वृश्चिकः '= विछुओ =विछिमो. वृक्षः = रुक्खो = 35. वी, (ओ, ङ्) आ. 4. वरणे. 152, स्वी४।२९, 2 मा१२, is. बीयते __ वरं कन्या 4-5 // 12 12. ब्री, प. 9. वरणे. 152j स्वी॥२, 2 भा१२. वीणाति, विणाति 12. बीहिः (i2), For Private And Personal Use Only