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( ७९ )
३८. वरकनकसूत्रम् । वरकनकशङ्कविद्रुम--श्रेष्ठ सुवर्ण, शंख, प्रवाल, मरकतघनसन्निभं विगतमोहम्--नीलमणि और मेघ
इनके समान वर्णवाले तथा मोह से रहित सप्ततिशतं जिनानां, सर्वामरपूजितं वन्दे ।--सर्व देवों
.. से पूजित एकसो सित्तर (१७०) जिनेश्वरों
को में वन्दन करता हूँ॥ १॥ एकसो सित्तर जिनेश्वरों में कोई सोने के समान पीले वर्णवाले, कोई शंख के समान सफेद वर्णवाले, कोई मुंगे के समान लाल वर्णवाले, कोई नीलमणि के समान नीलवर्णवाले और कोई मेघ के समान श्याम वर्णवाले इस प्रकार
भिन्न-भिन्न वर्णवाले तीर्थङ्कर होते हैं । ३९. मुनिवन्दन(अड्ढाइज्जेसु) सुत्तं । अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु-ढाईद्वीप और दो समुद्र के पण्णरससु कम्मभूमीसु-~-पन्द्रह कर्मभूमि क्षेत्रों में जावंत के वि साहू--जितने जो कोई साधु महात्मा हैं रयहरणगुच्छपडिग्गहधारा-रजोहरण ( ओघा ),
गुच्छा, और पात्र के धारण करनेवाले,
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