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( ५२ )
की प्रशंसा करना ४, तथा उनका परिचय
रखना ५,
सम्मत्तस्सइआरे-- ये पांच सम्यक्त्व के अतिचार दोष पडिक्कमे देसिअं सव्वं -- दिवस सम्बन्धी लगे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ॥ ६ ॥
छक्कायसमारंभे— पृथ्वी आदि छः काय के आरम्भ में पयणे अ पयावणे अ जे दोसा- अशनादि को पकाने और दूसरों से पकवाने और पकाते हुए लोगों का अनुमोदन करने से जो दोष लगा हो
अन्तट्ठ य परट्ठा - अपने वास्ते, दूसरों के वास्ते उभयट्ठा वेव तं निंदे । और स्वपर दोनों के वास्ते जो आरंभ हुआ हो उसकी मैं निन्दा करता हूँ ||७||
पंचण्हमणुव्वयाणं-पांच अणुव्रतों के
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च तिण्हमइयारे — और तीन गुणवत के अतिचारों में
गुणव्वपाणं
सिक्खाणं च उण्हं तथा चार शिक्षाव्रतों के अतिचार या उनमें से कोई अतिचार दोष लगा हो
पडिक्कमे देखिअं सव्वं । उन दिवस सम्बन्धी अतिचारों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ॥ ८ ॥
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