SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) दो लाख तेइन्द्रिय-- कानखजूरा, खटमल जं, कीड़ी, आदि त्रीन्द्रियजीवों की योनि दो लाख है, दो लाख चउरिन्द्रिय--विच्छु, ढींकुण, भँवरा, तीड, मक्खी आदि चार इन्द्रियवाले जीवों की योनि दो लाख हैं, चार लाख देवता -- देवों की योनि चार लाख है चार लाख नारकी - नरक के जीवों की योनि चार लाख हैं, चार लाख तिर्यच पंचेन्द्रिय-- पशु, पक्षी, मच्छ, मछली आदि पञ्चेन्द्रियतियच जीवों की योनि चार लाख है, चौदह लाख मनुष्य - - कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तद्वपज मनुष्यजीवों की योनि चौदह लाख है, एवंकारे चौरासी लाख जीवयोनि मांहे- इस प्रकार कुल चौराशी जीवयोनियों के जीवों में से लाख १ जीवों के उत्पत्तिस्थान को 'योनि' कहते हैं । सब मिला कर जीवों के चौरासी लाख उत्पत्तिस्थान हैं । यद्यपि उत्पत्तिस्थान इनसे भी अधिक हैं । किन्तु वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान से जितने स्थानक समान हों वे एक ही स्थानक माने गये हैं । For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy